कलाकाड–मुण्डनथुरै टाइगर रिज़र्व में प्रवेश शुल्क न वसूलने के हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी जिसमें तमिलनाडु वन विभाग को आगस्थियार जलप्रपात और उसके पास स्थित मंदिरों में जाने वाले तीर्थयात्रियों और स्थानीय निवासियों से प्रवेश शुल्क वसूलने से मना किया गया था। ये सभी स्थल कलाकाड–मुण्डनथुरै टाइगर रिज़र्व (KMTR) के भीतर आते हैं।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने राज्य सरकार की अपील पर नोटिस जारी किया और कहा कि हाईकोर्ट के आदेश पर फिलहाल अंतरिम स्थगन रहेगा। अदालत ने अकेले प्रतिवादी विक्रमसिंगीपुरम अनैतु समुदाय पेरावाल को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।

राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश “अविवेकी” है और इससे प्रशासनिक स्थिति जटिल हो गई है।
हाईकोर्ट ने कहा था कि आगस्थियार जलप्रपात और आसपास के मंदिरों तक जाने वाले “तीर्थयात्रियों और स्थानीय निवासियों” से कोई प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाए।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट ही नहीं किया कि “स्थानीय निवासी” किसे माना जाएगा। इस अस्पष्टता के कारण आसपास के गांवों और कस्बों के लगभग 20 लाख लोगों को बिना किसी शुल्क के अभयारण्य में प्रवेश मिल सकता है।

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यह याचिका अधिवक्ता पूर्निमा कृष्णा के माध्यम से दाखिल की गई है।

तमिलनाडु वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पापनाशम वन जांच चौकी पर लिया जाने वाला प्रवेश शुल्क

  • 8 फरवरी 2018 के सरकारी आदेश
    और
  • 15 अक्टूबर 2012 को जारी नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के दिशानिर्देश

के तहत लगाया जाता है।

विभाग ने कहा कि यह शुल्क कोई कर नहीं है बल्कि एक विनियामक उपाय है, जिसका उद्देश्य है:

  • प्रवेश और आवाजाही की निगरानी
  • एंटी-पोचिंग (शिकार-रोधी) प्रवर्तन
  • आवास (हैबिटेट) सुरक्षा
  • ईको-टूरिज़्म प्रबंधन
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याचिका में बताया गया कि आगस्थियार जलप्रपात पूरी तरह कलाकाड–मुण्डनथुरै टाइगर रिज़र्व के कोर ज़ोन में आता है, जो 895 वर्ग किलोमीटर में फैला है और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत एक “क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट” के रूप में अधिसूचित है। ऐसे क्षेत्रों में प्रवेश सख्ती से नियंत्रित होता है।

राज्य सरकार ने कहा कि “अनियंत्रित और मुफ्त प्रवेश” से संरक्षण प्रयासों को नुकसान होगा और कानूनी प्रावधानों के तहत निर्धारित पर्यावरण सुरक्षा उपाय कमजोर पड़ जाएंगे।

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सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक के चलते फिलहाल वन विभाग प्रवेश शुल्क वसूलना जारी रख सकेगा।

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