सांसद और अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ दायर एक आपराधिक शिकायत को खारिज करने के आदेश को चुनौती देने वाली एक निगरानी याचिका। शिकायत में किसानों और स्वतंत्रता सेनानियों पर अपमानजनक टिप्पणी करने और राजद्रोह का आरोप है।
अदालत ने निगरानी याचिका स्वीकार कर ली है। विशेष न्यायाधीश ने निचली अदालत के 6 मई 2025 के शिकायत खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस निचली अदालत में भेज दिया है।
इस कानूनी विवाद की शुरुआत 11 सितंबर 2024 को हुई, जब राजीव गांधी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष, अधिवक्ता रमाशंकर शर्मा ने आगरा की अदालत में सुश्री कंगना रनौत के खिलाफ यह शिकायत दर्ज कराई।
शिकायत में यह आरोप लगाया गया कि सुश्री रनौत ने 26 अगस्त 2024 को एक मीडिया इंटरव्यू और बाद में सोशल मीडिया पोस्ट में बेहद आपत्तिजनक और अपमानजनक बयान दिए। याचिकाकर्ता के अनुसार, इन बयानों में कथित तौर पर प्रदर्शनकारी किसानों को “दंगाई” और “आतंकवादी” कहा गया, जिससे पूरे किसान समुदाय का अपमान हुआ। शिकायत में यह भी आरोप है कि सुश्री रनौत ने महात्मा गांधी सहित स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान किया और “राजद्रोहात्मक टिप्पणियाँ” कीं।
याचिकाकर्ता ने सुश्री रनौत के खिलाफ राजद्रोह समेत अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी।
6 मई 2025 को, निचली अदालत (अधीनस्थ न्यायालय) ने इस शिकायत को खारिज कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ, शिकायतकर्ता अधिवक्ता शर्मा ने विशेष न्यायाधीश (सांसद/विधायक) के समक्ष एक निगरानी याचिका दायर की, जिसमें निचली अदालत के आदेश की वैधता और सटीकता को चुनौती दी गई।
विभिन्न समाचार एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत में याचिकाकर्ता (निगरानीकर्ता) और प्रतिवादी (सुश्री रनौत) दोनों के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत का शिकायत खारिज करने का आदेश “न्याय संगत” नहीं था। यह दलील दी गई कि निचली अदालत ने कथित तौर पर प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं की अनदेखी करते हुए और प्रस्तुत साक्ष्यों पर उचित विचार किए बिना, समय से पहले ही मामले को खारिज कर दिया था।
वहीं, सुश्री कंगना रनौत की ओर से पेश हुए वकीलों (जिनमें सुप्रीम कोर्ट के वकील भी शामिल थे) ने निगरानी याचिका का विरोध किया और निचली अदालत के आदेश का बचाव किया।
10 नवंबर 2025 को दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद, विशेष न्यायाधीश (सांसद/विधायक) लोकेश कुमार ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो उन्होंने बुधवार, 12 नवंबर 2025 को सुनाया।
अदालत ने अधिवक्ता रमाशंकर शर्मा द्वारा दायर निगरानी याचिका को स्वीकार कर लिया।
अपने फैसले में, अदालत ने निचली अदालत के 6 मई 2025 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने शिकायत को खारिज किया था। रिपोर्टों के मुताबिक, विशेष न्यायाधीश ने पाया कि निचली अदालत ने अपने आदेश में कुछ अनिवार्य प्रावधानों की अनदेखी की थी, जिसमें कथित तौर पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 225(1) का जिक्र किया गया।
अदालत ने मामले को वापस निचली अदालत में भेज दिया है (remitted) और यह निर्देश दिया है कि मामले पर नए सिरे से सुनवाई की जाए। निचली अदालत को निर्देश दिया गया है कि वह रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर कानून के अनुसार शिकायत पर पुनः सुनवाई करे।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर 2025 को निचली अदालत में निर्धारित की गई है।




