सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर हरियाणा के महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू), रोहतक में महिला सफाईकर्मियों से कथित रूप से उनके मासिक धर्म (पीरियड्स) का सबूत देने के लिए निजी अंगों की तस्वीरें मांगने के मामले की जांच की मांग की है।
एससीबीए ने केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार को इस घटना की विस्तृत जांच कराने का निर्देश देने की मांग की है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की अपील की है कि माहवारी के दौरान महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य, गरिमा, निजता और शारीरिक स्वायत्तता के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
याचिका में कहा गया है कि यह घटना महिलाओं की गरिमा के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और कार्यस्थल पर सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करने में तंत्र की असफलता को दर्शाती है।
घटना 26 अक्टूबर को उस समय सामने आई जब तीन महिला सफाईकर्मियों ने शिकायत दर्ज कराई कि दो पर्यवेक्षकों (सुपरवाइजर) ने उन्हें माहवारी के दौरान अस्वस्थ होने की जानकारी देने के बावजूद जबरन काम करने पर मजबूर किया।
महिलाओं ने आरोप लगाया कि पर्यवेक्षकों ने उनसे “तेजी से काम करने” का दबाव बनाया और जब उन्होंने मना किया तो निजी अंगों की तस्वीरें भेजकर यह साबित करने को कहा कि वे पीरियड्स में हैं।
“हमने कहा कि हम अस्वस्थ हैं और तेजी से काम नहीं कर सकतीं, लेकिन उन्होंने हमसे हमारे निजी अंगों की तस्वीरें भेजने को कहा। जब हमने इनकार किया तो उन्होंने गालियां दीं और नौकरी से निकालने की धमकी दी,” एक सफाईकर्मी ने कहा, जो पिछले 11 साल से विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
यह घटना उस दिन हुई जब हरियाणा के राज्यपाल आशीम कुमार घोष विश्वविद्यालय आने वाले थे। शिकायत में कहा गया है कि दोनों सुपरवाइजर ने यह कार्रवाई सहायक रजिस्ट्रार श्याम सुंदर के निर्देश पर की। हालांकि सुंदर ने ऐसे किसी निर्देश से इनकार किया है।
घटना के बाद पीजीआईएमएस थाना पुलिस ने आईपीसी की धाराओं के तहत यौन उत्पीड़न, आपराधिक डराने-धमकाने, महिला की मर्यादा भंग करने के इरादे से की गई हरकत, और बल प्रयोग के आरोप में एफआईआर दर्ज की। पुलिस ने यह भी कहा कि आरोपियों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज किया जा सकता है।
एमडीयू प्रशासन ने दोनों सुपरवाइजरों को तत्काल निलंबित कर दिया है। वे हरियाणा कौशल रोजगार निगम लिमिटेड के माध्यम से अनुबंध पर नियुक्त थे। साथ ही विश्वविद्यालय ने आंतरिक जांच भी शुरू कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की यह याचिका जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हो सकती है। इसमें न केवल एमडीयू मामले में जवाबदेही तय करने की मांग की गई है बल्कि यह भी कहा गया है कि पूरे देश में ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए ठोस दिशा-निर्देश बनाए जाएं।
यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई शुरू करता है, तो यह भारत में “मासिक धर्म के दौरान गरिमा और कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकारों” से जुड़ी कानूनी बहस का अहम पड़ाव बन सकता है।




