दिल्ली-एनसीआर में लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता और पराली जलाने की घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों से पूछा है कि उन्होंने इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए हैं।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने यह निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई 17 नवम्बर को तय की।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “पंजाब और हरियाणा सरकारें बताएं कि पराली जलाने पर नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।”
सुनवाई की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत को बताया कि फिलहाल ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) का तीसरा चरण लागू है, लेकिन वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कई स्थानों पर 450 के पार पहुंच गया है।
उन्होंने कहा, “अब GRAP-IV लागू किया जाना चाहिए। यहां अदालत परिसर के बाहर भी खुदाई और ड्रिलिंग का काम चल रहा है—कम से कम न्यायालय परिसर में तो यह नहीं होना चाहिए।”
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने आश्वासन दिया कि निर्माण गतिविधियों के संबंध में कार्रवाई की जाएगी।
अमिकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट अपराजिता सिंह ने अदालत को बताया कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं बड़े पैमाने पर जारी हैं, जबकि अदालत के स्पष्ट आदेश हैं।
उन्होंने नासा के उपग्रह चित्रों का हवाला देते हुए कहा कि इन राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं धड़ल्ले से हो रही हैं, जिससे दिल्ली-एनसीआर की हवा और जहरीली हो रही है।
उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की खुली अवहेलना की जा रही है। इन राज्यों को जवाब देना चाहिए कि वर्तमान स्थिति पर उन्होंने क्या कदम उठाए हैं।”
इससे पहले 3 नवम्बर को शीर्ष अदालत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को निर्देश दिया था कि वह अब तक उठाए गए कदमों पर एक हलफनामा दाखिल करे। यह मामला प्रसिद्ध पर्यावरण जनहित याचिका एम.सी. मेहता केस से जुड़ा हुआ है।
सुनवाई के दौरान अमिकस ने यह भी बताया था कि दीवाली के दौरान दिल्ली के कई वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्र (Monitoring Stations) काम नहीं कर रहे थे।
उन्होंने कहा, “37 निगरानी केंद्रों में से केवल 9 ही दीवाली के दिन लगातार काम कर रहे थे। अगर मॉनिटरिंग स्टेशन ही बंद हैं तो यह पता कैसे चलेगा कि GRAP कब लागू करना है?”
अदालत ने तब CAQM को निर्देश दिया था कि वह प्रदूषण के ‘गंभीर स्तर’ तक पहुंचने से पहले रोकथाम के उपायों पर विस्तृत रिपोर्ट दे।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को भरोसा दिलाया कि संबंधित एजेंसियां जल्द ही आवश्यक रिपोर्ट दाखिल करेंगी।
इससे पहले 15 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दीवाली के दौरान ग्रीन क्रैकर्स बेचने और फोड़ने की सीमित अनुमति दी थी।
अदालत ने स्पष्ट किया था कि यह अनुमति केवल “परीक्षण के तौर पर” और 18 से 20 अक्टूबर तक सीमित अवधि के लिए होगी।
साथ ही अदालत ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को निर्देश दिया था कि वे रोजाना वायु गुणवत्ता की निगरानी करें और अधिक प्रदूषण वाले क्षेत्रों से नमूने एकत्र करें।
अब जबकि दिल्ली-एनसीआर की हवा “गंभीर” श्रेणी में पहुंच चुकी है, सुप्रीम कोर्ट का ताजा हस्तक्षेप एक बार फिर पंजाब और हरियाणा सरकारों को कटघरे में खड़ा करता है — यह देखने के लिए कि क्या उन्होंने पराली जलाने की समस्या पर वास्तव में कोई ठोस कदम उठाया है या नहीं।




