सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली में केरल के दो छात्रों पर हुए कथित हमले और उनके पारंपरिक वस्त्र ‘लुंगी’ पहनने पर की गई टिप्पणियों पर कड़ी नाराज़गी जताई। न्यायालय ने कहा कि देश में भाषा या वेशभूषा के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। “यह अस्वीकार्य है, हम एक देश हैं,” अदालत ने कहा।
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति अलोक अराधे की पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब वह 2015 में दाखिल एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका अरुणाचल प्रदेश के छात्र निडो तानिया की दिल्ली में हत्या और पूर्वोत्तर के लोगों पर बढ़ते नस्ली हमलों के बाद दाखिल की गई थी।
पीठ ने कहा, “हाल ही में हमने अखबारों में पढ़ा कि दिल्ली में एक व्यक्ति को लुंगी पहनने के कारण मज़ाक का पात्र बनाया गया। यह ऐसे देश में अस्वीकार्य है जहाँ लोग सौहार्दपूर्वक रहते हैं। आपको इस पर अधिक चिंता करनी चाहिए। हम एक देश हैं।”
यह टिप्पणी तब आई जब सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज के दो छात्रों को स्थानीय लोगों और पुलिस ने कथित रूप से पीटा, उन्हें ज़बरदस्ती हिंदी बोलने के लिए कहा गया और उनकी पारंपरिक वेशभूषा का मज़ाक उड़ाया गया।
यह सुनवाई 2015 की उस जनहित याचिका से संबंधित है जिसमें पूर्वोत्तर के लोगों पर बढ़ते नस्ली हमलों और भेदभाव की घटनाओं को लेकर चिंता जताई गई थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह नस्ली भेदभाव, हिंसा और अत्याचार के मामलों पर नज़र रखने के लिए एक समिति गठित करे, जिसे सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने और रोकथाम के उपाय सुझाने के अधिकार दिए जाएं।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज, जो केंद्र की ओर से पेश हुए, ने अदालत को बताया कि निगरानी समिति का गठन हो चुका है और अब याचिका में कुछ भी शेष नहीं है।
इस पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने विरोध जताया और कहा कि नस्ली भेदभाव और पूर्वोत्तर के लोगों के बहिष्कार की घटनाएँ अब भी जारी हैं, जिसका हालिया उदाहरण केरल के छात्रों पर हमला है।
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि समिति को प्रत्येक तीन महीने में बैठक करनी थी, लेकिन पिछले नौ वर्षों में केवल 14 बार बैठक हुई है, जो निगरानी तंत्र की निष्क्रियता को दर्शाता है।
सुनवाई के अंत में पीठ ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह केंद्र द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट पर अपना प्रत्युत्तर दाखिल करे। अदालत ने कहा कि जवाब दाखिल होने के बाद अगली सुनवाई तय की जाएगी।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के उन पूर्व निर्देशों से जुड़ा है जो नस्ली हिंसा और भेदभाव की घटनाओं को रोकने के लिए जारी किए गए थे। अदालत की ताज़ा टिप्पणी इस बात को रेखांकित करती है कि भाषा, क्षेत्र या वेशभूषा के आधार पर भेदभाव न केवल असंवैधानिक है बल्कि सामाजिक एकता के लिए भी ख़तरनाक है।




