सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली के वकील विक्रम सिंह की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को सुनवाई करने पर सहमति जताई है। सिंह को हरियाणा पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने एक हत्या के मामले में गिरफ्तार किया था। उनका कहना है कि उन्हें केवल अपने मुवक्किल का पेशेवर रूप से बचाव करने के कारण झूठे मामले में फंसाया गया है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने यह मामला सुना। वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने अदालत से आग्रह किया कि यह मामला अत्यंत गंभीर है क्योंकि “एक वकील को अपने पेशेवर कर्तव्यों के निर्वहन के लिए गिरफ्तार किया गया है।”
इस पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “हम बुधवार को सुनवाई करेंगे।”
विक्रम सिंह की गिरफ्तारी के विरोध में दिल्ली की जिला अदालतों की बार एसोसिएशन की समन्वय समिति ने 6 नवम्बर को सभी जिला अदालतों में काम का बहिष्कार किया था। समिति ने आरोप लगाया कि सिंह को हत्या के झूठे मामले में फंसाया गया है।
याचिका के अनुसार, सिंह जुलाई 2019 से बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में पंजीकृत अधिवक्ता हैं और फिलहाल फरीदाबाद जेल में बंद हैं। याचिका में हरियाणा सरकार, दिल्ली सरकार और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को पक्षकार बनाया गया है।
याचिका में मांग की गई है कि—
- याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा किया जाए,
- एफआईआर संख्या (विवरण गोपनीय), थाना सेक्टर–8 फरीदाबाद, के तहत दर्ज मुकदमे और उससे संबंधित सभी कार्यवाही रद्द की जाए,
- गुरुग्राम STF की कथित अवैध कार्रवाई की न्यायिक जांच कराई जाए।
याचिका में कहा गया है कि सिंह को 31 अक्टूबर को बिना लिखित गिरफ्तारी कारण बताए और बिना स्वतंत्र गवाहों के गिरफ्तार किया गया, जिससे संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 का उल्लंघन हुआ।
1 नवम्बर को फरीदाबाद की निचली अदालत ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया, जिसे याचिकाकर्ता ने “बिना कारण बताए पारित यांत्रिक आदेश” बताया है।
याचिका में कहा गया है कि सिंह की गिरफ्तारी प्रतिशोधात्मक कार्रवाई है। उन्होंने अदालत में अपने एक मुवक्किल ज्योति प्रकाश उर्फ ‘बाबा’ के STF हिरासत में पिटाई और पैर टूटने की शिकायत की थी।
इसके बाद, याचिका के अनुसार, “जांच एजेंसी ने बदले की कार्रवाई करते हुए अवैध रूप से मेरी गिरफ्तारी की।”
सिंह ने बताया कि 2021 से 2025 के बीच उन्होंने कई आपराधिक मामलों में मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व किया, जिनमें कुछ आरोपी कपिल सांगवान उर्फ ‘नंदू’ से जुड़े बताए गए थे।
उन्होंने कहा कि “इन सभी मामलों में प्रतिनिधित्व केवल अधिवक्ता अधिनियम और पेशेवर आचार संहिता के अनुरूप अपने कर्तव्यों के निर्वहन के तहत किया गया।”
याचिका में यह भी कहा गया है कि जांच एजेंसी ने उनके मुवक्किलों से पेशेवर संबंधों को अपराध की तरह पेश कर वकालत की स्वतंत्रता और ‘अधिवक्ता–मुवक्किल संबंध की पवित्रता’ को कमजोर किया है।




