सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ‘भुगतान करें और वसूल करें’ (pay and recover) सिद्धांत को बरकरार रखा है। न्यायालय ने एक बीमा कंपनी को निर्देश दिया है कि वह वाहन मालिक द्वारा बीमा पॉलिसी की शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन किए जाने के बावजूद, मोटर दुर्घटना के दावेदार को मुआवजे का भुगतान करे।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि द ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को पहले मोटर दुर्घटना ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए मुआवजे का भुगतान करना होगा, और इसके बाद वह इस राशि को वाहन के मालिक से वसूल करने के लिए स्वतंत्र होगी।
जस्टिस मनोज मिश्रा द्वारा लिखे गए इस फैसले (अकुला नारायणा बनाम द ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य) ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने बीमा कंपनी को उसकी देनदारी से पूरी तरह मुक्त कर दिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील दावेदार अकुला नारायणा द्वारा तेलंगाना हाईकोर्ट के 8 जून 2022 के एक आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने बीमा कंपनी की अपील को स्वीकार करते हुए, 29 अप्रैल 2021 को मोटर दुर्घटना ट्रिब्यूनल द्वारा पारित फैसले को आंशिक रूप से रद्द कर दिया था।
ट्रिब्यूनल ने अपने मूल फैसले में बीमा कंपनी (पहले प्रतिवादी) और वाहन मालिक (दूसरे प्रतिवादी) को दावेदार को मुआवजा देने के लिए संयुक्त और व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया था। ट्रिब्यूनल का यह निष्कर्ष बीमा कंपनी के एक प्रशासनिक प्रबंधक के उस बयान पर आधारित था, जिसने जिरह के दौरान स्वीकार किया था कि बीमाकर्ता ने “कंडक्टर और क्लीनर के लिए अतिरिक्त प्रीमियम” लिया था। इसी आधार पर ट्रिब्यूनल ने माना कि मृतक (जो एक यात्री था) पॉलिसी के तहत एक ‘तीसरा पक्ष’ माना जाएगा।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इस निष्कर्ष को पलट दिया। हाईकोर्ट ने माना कि भले ही बीमाकर्ता ने ड्राइवर, कंडक्टर और क्लीनर के लिए अतिरिक्त प्रीमियम लिया हो, लेकिन “पॉलिसी किसी अन्य व्यक्ति या यात्री के जोखिम को कवर नहीं करेगी।” इसके अलावा, हाईकोर्ट ने कहा कि दुर्घटना के समय पांच-सीटर वाहन में नौ लोग सवार थे, जो “पॉलिसी के नियमों और शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन” था। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने बीमा कंपनी को किसी भी देनदारी से मुक्त कर दिया था।
इसके बाद, दावेदार ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया कि उसके लिए वाहन मालिक से मुआवजे की वसूली करना मुश्किल है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलीलें
अपीलकर्ता (दावेदार) के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि ड्राइवर, कंडक्टर और क्लीनर के लिए अतिरिक्त प्रीमियम लिया गया था, इसलिए पॉलिसी कम से कम तीन व्यक्तियों के जोखिम को कवर करती थी।
वैकल्पिक तर्क के रूप में, अपीलकर्ता ने कहा कि यदि पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन हुआ भी हो, तब भी बीमा कंपनी को उसकी देनदारी से पूरी तरह मुक्त नहीं किया जा सकता। नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम स्वर्ण सिंह (2004) और शमन्ना व अन्य बनाम डिविजनल मैनेजर, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य (2018) के मामलों का हवाला देते हुए, यह तर्क दिया गया कि बीमाकर्ता को ‘भुगतान करने और बाद में मालिक से वसूल करने’ का निर्देश दिया जाना चाहिए।
इसके विपरीत, बीमा कंपनी के वकील ने तर्क दिया कि यह एक वैधानिक पॉलिसी थी और “ड्राइवर, कंडक्टर और क्लीनर के अलावा, एक अनधिकृत यात्री (gratuitous passenger) तीसरा पक्ष नहीं है।” उन्होंने यह भी दलील दी कि पांच-सीटर वाहन में “स्पष्ट रूप से नौ यात्री” थे, जो पॉलिसी की शर्त का उल्लंघन था, इसलिए कंपनी उत्तरदायी नहीं है।
न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने विश्लेषण में पाया कि वाहन मालिक (बीमित) ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की थी। इसलिए, विचार के लिए एकमात्र प्रश्न यह था कि “क्या हाईकोर्ट को बीमाकर्ता को उसकी देनदारी से पूरी तरह मुक्त कर देना चाहिए था या बीमाकर्ता को भुगतान करने और वाहन मालिक से वसूल करने की स्वतंत्रता के साथ निर्देश देना चाहिए था।”
पीठ ने पाया कि बीमा अनुबंध पर कोई विवाद नहीं था। जस्टिस मिश्रा ने फैसले में कहा: “जहां बीमा अनुबंध विवादित नहीं है, वहां बीमा शर्तों के उल्लंघन पर भी, इस न्यायालय ने बीमाकर्ता को दावेदार को मुआवजा देने की अनुमति दी है और बीमाकर्ता को यह अधिकार दिया है कि वह उस राशि को वाहन मालिक से वसूल करे। ‘भुगतान करें और वसूल करें’ सिद्धांत का लगातार पालन किया गया है…”
पीठ ने रामा बाई बनाम अमित मिनरल्स (2025) के हालिया फैसले का भी जिक्र किया, जहां इसी सिद्धांत को लागू किया गया था।
इन्हीं न्यायिक मिसालों का अनुसरण करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने दावेदार की अपील को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने आदेश दिया: “उपरोक्त फैसलों का पालन करते हुए, हम अपील को इस निर्देश के साथ अनुमति देना उचित समझते हैं कि पहला प्रतिवादी (यानी, बीमाकर्ता) अवार्ड की राशि का भुगतान करेगा, हालांकि, वह इस भुगतान की गई राशि को बीमित (यानी, वाहन के मालिक) से वसूल कर सकता है।”
अपील को उपरोक्त हद तक स्वीकार किया गया।




