हत्या के मुकदमे में यौन उत्पीड़न के ‘पुख्ता सबूतों’ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की की हत्या के दोषी व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि एक ट्रायल कोर्ट यौन उत्पीड़न के “पुख्ता सबूतों” (overwhelming evidence) को नजरअंदाज करके आरोपी को केवल हत्या के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा कि एक फैसले में “सबूतों द्वारा स्थापित सभी अपराधों के लिए दोषसिद्धि दर्ज” की जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने पाया कि इस मामले में बलात्कार और पॉक्सो (POCSO) के आरोपों पर दोषी न ठहराना “सबूतों की स्पष्ट गलत व्याख्या” (misappreciation of the evidence) को दर्शाता है।

अदालत ने यह टिप्पणी एक आपराधिक अपील (CRA No. 143 of 2025) को खारिज करते हुए की। इस अपील में, अपीलकर्ता की 2022 में हुई एक 12 वर्षीय लड़की की हत्या (धारा 302, IPC) और सबूत नष्ट करने (धारा 201, IPC) के लिए मिली सजा को चुनौती दी गई थी। पीठ ने इस बात पर भी खेद व्यक्त किया कि यह “वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण” है कि राज्य सरकार ने इन यौन अपराधों के आरोपों से बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ अपील नहीं की।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील सकती जिले के स्पेशल जज (F.T.S.C) द्वारा दिनांक 21.11.2024 को पारित फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को हत्या (302) और सबूत नष्ट करने (201) का दोषी पाया था, लेकिन उसे अपहरण (363), हत्या के इरादे से अपहरण (364), नाबालिग से बलात्कार (376(3) IPC) और पॉक्सो एक्ट की धाराओं 4 और 6 के आरोपों से बरी कर दिया था।

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अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि 28 फरवरी और 1 मार्च, 2022 की दरम्यानी रात को 21 वर्षीय अपीलकर्ता ने 12 वर्षीय पीड़िता को उसके घर से फुसलाया, उसे कीटनाशक (pesticide) पिलाया और उसके साथ बलात्कार किया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, उसकी मौत सुनिश्चित करने के लिए, आरोपी कथित तौर पर “उसकी छाती पर चढ़ गया, उसका गला घोंट दिया,” पुलिस को गुमराह करने के लिए उसकी जेब में एक सुसाइड नोट रखा और उसके शरीर को एक तालाब में फेंक दिया। पीड़िता का शव 3 मार्च 2022 को मिला था।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता के तर्क: अपीलकर्ता के वकील, श्री हरि अग्रवाल ने तर्क दिया कि सजा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों (circumstantial evidence) पर आधारित थी और अभियोजन पक्ष एक पूरी श्रृंखला स्थापित करने में विफल रहा। बचाव पक्ष का मुख्य बिंदु पोस्टमार्टम रिपोर्ट (मौत का कारण “गला घोंटने से श्वासावरोध”) और FSL रिपोर्ट (जिसमें “कीटनाशक की उपस्थिति” पाई गई) के बीच “मौलिक अंतर्विरोध” (fundamental contradiction) था।

राज्य के तर्क: उप महाधिवक्ता श्री शशांक ठाकुर ने सजा का समर्थन करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ने “परिस्थितियों की एक पूरी श्रृंखला” साबित की है। उन्होंने तर्क दिया कि मेडिकल सबूतों में कोई अंतर्विरोध नहीं है, क्योंकि “संयुक्त निष्कर्ष अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन करते हैं कि पीड़िता को न केवल जहर दिया गया था, बल्कि उसके साथ हिंसा और गला घोंटने की घटना भी हुई थी।”

हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा द्वारा लिखे गए फैसले में, हाईकोर्ट ने “पूरी साक्ष्य सामग्री का सावधानीपूर्वक पुनर्मूल्यांकन” किया।

1. ट्रायल कोर्ट द्वारा ‘सबूतों की गलत व्याख्या’ पर हाईकोर्ट की टिप्पणी हाईकोर्ट की सबसे कड़ी टिप्पणियाँ ट्रायल कोर्ट द्वारा पॉक्सो और बलात्कार के आरोपों से बरी किए जाने को लेकर थीं। पीठ ने कहा, “…हम यह नोट करने के लिए विवश हैं कि ट्रायल कोर्ट ने, भारी मेडिकल और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के बावजूद, अपीलकर्ता को आईपीसी की धाराओं 363, 364, 376(3) और पॉक्सो एक्ट की धाराओं 4 और 6 के गंभीर आरोपों से बरी करने में त्रुटि की है।”

फैसले में पाया गया कि मेडिकल सबूत “निर्विवाद रूप से प्रदर्शित” करते हैं कि पीड़िता को “क्रूर और जबरन यौन हमले” का शिकार बनाया गया था। अदालत ने “जननांगों में व्यापक सूजन, गहरे घाव और रक्त के थक्कों के साथ योनि कैनाल के फटने” के सबूतों का हवाला दिया और कहा कि ये चोटें “हिंसक यौन हमले की चिकित्सकीय विशेषता” हैं।

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2. हत्या की प्रकृति पर हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष की पुष्टि की कि मौत एक हत्या थी। इसने बचाव पक्ष के ‘जहर बनाम गला घोंटने’ के तर्क को सीधे संबोधित करते हुए कहा: “यह न तो आवश्यक है और न ही अनिवार्य है कि शरीर में जहर का पाया जाना और मृत्यु पूर्व गला घोंटा जाना, ये दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं।”

पीठ ने मेडिकल गवाही (PW-30, PW-32) और पोस्टमार्टम रिपोर्ट (Ex.P-4) पर भरोसा किया, जिसमें “स्वरयंत्र (larynx) और श्वासनली (trachea) के फ्रैक्चर” और “गर्दन की प्लैटिस्मा मांसपेशी में रक्त के थक्के” को गला घोंटने के “क्लासिक संकेत” के रूप में उजागर किया गया, जिसे “केवल जहर की उपस्थिति से नहीं समझाया जा सकता।”

3. अपीलकर्ता के दोष और मकसद पर अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने “एक मजबूत और तात्कालिक मकसद” (strong and proximate motive) स्थापित किया था। इसने मृतक की बहनों (PW-7, PW-21) और दादी (PW-38) की गवाही पर भरोसा किया। फैसले में उल्लेख किया गया, “PW-21 ने गवाही दी कि मृतक ने उसे बताया था कि आरोपी ने उसे स्पष्ट रूप से चेतावनी दी थी कि यदि वह उससे बात करना या मिलना बंद कर देगी, तो वह उसे जान से मार देगा।”

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सुसाइड नोट (Ex.D-1) के संबंध में, जिसकी हैंडराइटिंग विशेषज्ञ ने पुष्टि की थी कि वह पीड़िता का ही है, अदालत ने माना कि यह “अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर नहीं करता है।” फैसले में पाया गया कि नोट लिखे जाने के बाद दोनों के संबंध “काफी खराब हो गए थे” और अपीलकर्ता ने “अपराध को आत्महत्या का रूप देने का प्रयास” करते हुए इसे वहां रखा था।

अंतिम निर्णय

यह निष्कर्ष निकालते हुए कि अभियोजन पक्ष ने अपना मामला उचित संदेह से परे (beyond reasonable doubt) साबित कर दिया है, हाईकोर्ट ने “ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज निष्कर्षों में कोई अवैधता या दुर्बलता नहीं पाई, जो हस्तक्षेप की मांग करती हो।”

आपराधिक अपील “खारिज कर दी गई।” अपीलकर्ता, जो 5 मार्च, 2022 से जेल में है, “ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को पूरा करेगा।”

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