आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, अस्पताल-स्कूलों से हटाने और वापस उसी इलाके में न छोड़ने का आदेश

देश में कुत्तों के काटने की “चिंताजनक वृद्धि” के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, बस स्टैंड, खेल परिसरों और रेलवे स्टेशनों जैसे सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को हटाने का निर्देश दिया है।

जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने स्पष्ट किया है कि इन कुत्तों को पकड़कर निर्धारित डॉग शेल्टर (कुत्ता आश्रय गृह) में भेजा जाना चाहिए। बेंच ने एक प्रमुख निर्देश देते हुए कहा कि इन कुत्तों को “पकड़े जाने वाले स्थान पर वापस नहीं छोड़ा जाना चाहिए।”

कोर्ट ने यह आदेश एक स्वत: संज्ञान (suo motu) कार्यवाही के दौरान दिया, जिसकी निगरानी वह खुद कर रहा है। बेंच ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि कुत्ते सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों व अस्पतालों के परिसर में प्रवेश न कर सकें। इस पूरी प्रक्रिया को लागू करने के लिए अदालत ने आठ सप्ताह का समय दिया है।

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यह मामला 28 जुलाई को एक मीडिया रिपोर्ट के बाद शुरू हुआ था, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में आवारा कुत्तों के काटने से रेबीज फैलने, खासकर बच्चों के प्रभावित होने पर प्रकाश डाला गया था।

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पिछले आदेश और स्पष्टीकरण

सुप्रीम कोर्ट पहले भी इस स्थिति को “बेहद गंभीर” बताते हुए कई आदेश दे चुका है। जुलाई में, कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के इलाकों से आवारा कुत्तों को रिहायशी इलाकों से हटाकर आश्रय गृहों में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था।

कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि इन आश्रय गृहों में कुत्तों को संभालने, उनकी नसबंदी और टीकाकरण करने के लिए पेशेवर कर्मचारी होने चाहिए और कुत्तों को बाहर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह चेतावनी भी दी थी कि जो भी व्यक्ति या संगठन कुत्तों को पकड़ने के काम में बाधा डालेगा, उस पर “सख्त कार्रवाई” की जाएगी।

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हालांकि पहले एक आदेश में नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उसी इलाके में वापस छोड़ने की बात कही गई थी, लेकिन तीन-जजों की बेंच ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यह नीति रेबीज से संक्रमित, संदिग्ध संक्रमित या “आक्रामक व्यवहार” दिखाने वाले कुत्तों पर लागू नहीं होगी।

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने नगर निगम अधिकारियों को कुत्तों को खिलाने के लिए “समर्पित स्थान” बनाने का निर्देश दिया था, और स्पष्ट किया था कि “सार्वजनिक तौर पर खिलाने की अनुमति नहीं होगी” और उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

आवारा पशुओं पर भी निर्देश

इसी सुनवाई के दौरान, बेंच ने अपना दायरा बढ़ाते हुए सड़कों पर आवारा मवेशियों की समस्या का भी संज्ञान लिया। कोर्ट ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और नागरिक निकायों को राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और अन्य सड़कों से आवारा मवेशियों को हटाने का आदेश दिया।

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बेंच ने एक “समर्पित हाईवे पेट्रोल टीम” के गठन का आदेश दिया, जो सड़कों पर आवारा मवेशियों को पकड़कर आश्रय गृहों में पहुंचाएगी, जहाँ उनकी उचित देखभाल की जाएगी।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि “सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर आवारा मवेशियों की सूचना देने के लिए हेल्पलाइन नंबर” होने चाहिए और सभी राज्यों के मुख्य सचिव इन निर्देशों का “सख्ती से अनुपालन” सुनिश्चित करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 13 जनवरी को करेगा।

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