दिल्ली हाईकोर्ट को केंद्र ने बताया—अजमेर दरगाह के गर्भगृह में नहीं लगेंगे सीसीटीवी कैमरे; समिति गठन की प्रक्रिया तीन माह में पूरी करने का निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट को गुरुवार को केंद्र सरकार ने सूचित किया कि अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के गर्भगृह (सैंक्टम सैंक्टोरम) के भीतर सीसीटीवी कैमरे लगाने की कोई योजना नहीं है।

केंद्र ने कहा कि कैमरे केवल सार्वजनिक मार्गों और गर्भगृह तक जाने वाले रास्तों पर लगाए जा रहे हैं ताकि जेबकतरी, छेड़छाड़ और चोरी की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।

न्यायमूर्ति सच्चिन दत्ता ने केंद्र के वकील के इस स्पष्टीकरण को दर्ज करते हुए सरकार को अजमेर शरीफ दरगाह समिति के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया शीघ्र पूरी करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा, “प्रक्रिया को तेज किया जाए और सदस्यों की नियुक्ति यथाशीघ्र, अधिमानतः तीन माह के भीतर की जाए।”

यह आदेश सैयद मेहराज मियां नामक खादिम द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया। याचिकाकर्ता ने केंद्र द्वारा नियुक्त नाज़िम के उस निर्णय को चुनौती दी थी जिसके तहत दरगाह के गर्भगृह में कैमरे लगाए जाने की बात कही गई थी।

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अजमेर शरीफ दरगाह समिति, जो 13वीं शताब्दी के इस सूफी स्थल के संचालन की जिम्मेदारी संभालती है, वर्ष 2022 से निष्क्रिय पड़ी है। समिति के अभाव में वर्तमान में नाज़िम और सहायक नाज़िम ही प्रशासनिक निर्णय ले रहे हैं।

केंद्र सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि सुरक्षा ऑडिट के बाद ही कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है और यह गर्भगृह के भीतर नहीं होंगे। इस स्पष्टीकरण के बाद याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सार्वजनिक क्षेत्रों में कैमरे लगाने पर कोई आपत्ति नहीं है। इसके बाद अदालत ने याचिका का निस्तारण कर दिया।

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याचिकाकर्ता ने दरगाह समिति की नियुक्ति की प्रक्रिया शीघ्र पूरी करने की भी मांग की और वर्तमान प्रशासन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए।
याचिका में कहा गया, “दरगाह समिति की वित्तीय अनियमितताएं अत्यंत चिंताजनक हैं और इससे सूफी संत ख्वाजा साहिब के श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों का विश्वास और आस्था प्रभावित हो रही है, जो विश्वभर से उदारतापूर्वक दान करते हैं।”

अजमेर शरीफ दरगाह देश के सबसे प्रमुख सूफी स्थलों में से एक है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु विभिन्न धर्मों से आकर हाजिरी लगाते हैं।

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