सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार पर कड़ी नाराज़गी जताई जब उसने ट्रिब्यूनल सुधार (तर्कसंगठन और सेवा शर्तें) अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई टालने का आग्रह किया। इनमें मद्रास बार एसोसिएशन की याचिका भी शामिल है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई बोले—“अदालत के साथ बहुत अनुचित”
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी द्वारा दी गई स्थगन की अर्जी पर तीखी प्रतिक्रिया दी। भाटी ने बताया कि अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन के कारण व्यस्त हैं, इसलिए सुनवाई स्थगित की जाए।
इस पर सीजेआई ने कहा, “यह अदालत के साथ बहुत अनुचित है। हमने उन्हें पहले भी दो बार सुविधा दी है। यह ठीक नहीं है।” उन्होंने सवाल उठाया कि केंद्र के पास इतने सक्षम कानून अधिकारी (ASG) हैं, फिर कोई और क्यों नहीं दलीलें दे सकता।
सीजेआई ने कहा, “जब हम हाईकोर्ट में थे, तब पार्ट-हर्ड मामलों के लिए बाकी ब्रीफ छोड़ देते थे। हमने शुक्रवार को सिर्फ इस केस के लिए समय खाली रखा है ताकि बहस पूरी हो और सप्ताहांत में फैसला लिखा जा सके।”
जब भाटी ने सुझाव दिया कि सुनवाई सोमवार को की जाए, तो मुख्य न्यायाधीश ने तीखे लहजे में कहा, “फिर हम फैसला कब लिखें? हर दिन यही कहा जाता है कि वे आर्बिट्रेशन में व्यस्त हैं। आखिरी वक्त में आप संविधान पीठ को रेफर करने की अर्जी लेकर आ जाते हैं!”
सीजेआई की चेतावनी—“अगर वह नहीं आए, तो हम मामला बंद कर देंगे”
आखिरकार, पीठ ने यह तय किया कि शुक्रवार को सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार (मद्रास बार एसोसिएशन की ओर से) की दलीलें सुनी जाएंगी, और सोमवार को अटॉर्नी जनरल को सुनने का अवसर दिया जाएगा। सीजेआई ने स्पष्ट कहा, “अगर वे नहीं आए, तो हम मामला बंद कर देंगे।”
यह पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति के. वियोनद चंद्रन भी शामिल हैं, पहले ही याचिकाकर्ताओं की अंतिम दलीलें सुन चुकी है। अदालत इससे पहले केंद्र सरकार की उस मांग पर भी नाराज़ हुई थी जिसमें उसने सुनवाई के अंतिम चरण में यह मामला पाँच-सदस्यीय संविधान पीठ को भेजने की अर्जी दी थी।
सीजेआई ने कहा, “पिछली तारीख पर आपने (अटॉर्नी जनरल) व्यक्तिगत कारणों से स्थगन मांगा था, तब यह आपत्ति नहीं उठाई। अब जब पूरी दलीलें सुन ली गईं, तो आप नए मुद्दे ला रहे हैं… हम केंद्र से ऐसी रणनीति की उम्मीद नहीं करते।” उन्होंने यह भी जोड़ा, “ऐसा लगता है कि केंद्र मौजूदा पीठ से बचना चाहता है।”
2021 के ट्रिब्यूनल सुधार कानून पर सवाल
याचिकाएं ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती हैं। इस कानून के तहत कई अपीलीय ट्रिब्यूनल, जैसे फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलीय ट्रिब्यूनल, समाप्त कर दिए गए और सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से जुड़ी व्यवस्थाओं में बदलाव किए गए।
अरविंद दातार ने अदालत को याद दिलाया कि जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल सुधार अध्यादेश, 2021 की कई धाराओं को निरस्त कर दिया था क्योंकि वे न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों का उल्लंघन करती थीं।
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद केंद्र ने अगस्त 2021 में लगभग वही प्रावधान अधिनियम में दोबारा शामिल कर दिए—“शब्दशः वही बातें जो कोर्ट पहले ही असंवैधानिक ठहरा चुका है।”
सुप्रीम कोर्ट ने उस समय चार साल का कार्यकाल तय करने वाले प्रावधान को रद्द करते हुए कहा था कि कम अवधि से कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ सकता है। कोर्ट ने पाँच साल का कार्यकाल और अध्यक्ष के लिए अधिकतम आयु 70 वर्ष (सदस्यों के लिए 67 वर्ष) तय करने का निर्देश दिया था।
कोर्ट ने न्यूनतम आयु 50 वर्ष का प्रावधान भी असंवैधानिक ठहराया था, यह कहते हुए कि न्यायपालिका में युवा वकीलों का प्रवेश आवश्यक है। इसके अलावा, चयन समिति द्वारा सुझाए गए केवल दो नामों में से एक चुनने की केंद्र को दी गई शक्ति भी रद्द की गई थी।
शीर्ष अदालत ने 16 अक्टूबर से इस मामले में अंतिम सुनवाई शुरू की थी। यह मामला न्यायिक स्वतंत्रता और ट्रिब्यूनलों पर कार्यपालिका के नियंत्रण की सीमा तय करने के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है।
अब अदालत शुक्रवार को दातार की बहस सुनेगी और सोमवार को अटॉर्नी जनरल की दलीलें—अगर वे पेश हुए—सुनने की योजना है।




