केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को सबरीमला मंदिर के सोने मढ़ाई (गोल्ड प्लेटिंग) कार्यों में हुई गंभीर अनियमितताओं पर कड़ा रुख अपनाते हुए विशेष जांच दल (SIT) को निर्देश दिया कि वह यह जांच करे कि क्या इस मामले के तथ्य भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत कोई अपराध बनाते हैं, और यदि बनाते हैं तो संबंधित त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (TDB) के अधिकारियों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजा विजयाराघवन वी और न्यायमूर्ति के. वी. जयकुमार की खंडपीठ ने दिया। अदालत ने कहा कि मंदिर के द्वारपालक (प्रहरी देवता) मूर्तियों और अन्य कलाकृतियों की सोने की परत चढ़ाने में “गंभीर अनियमितताएं” और “गबन जैसे कृत्य” किए गए प्रतीत होते हैं।
खंडपीठ ने टिप्पणी की कि ये अनियमितताएं “देवस्वम बोर्ड के उच्चतम स्तर से लेकर अधीनस्थ कर्मचारियों तक की सक्रिय मिलीभगत” से की गईं।
अदालत ने पाया कि देवस्वम बोर्ड की कार्यवाही पुस्तिका (minutes book) 28 जुलाई 2025 तक ही अद्यतन की गई थी और वह भी “अपूर्ण और अनियमित” थी। अदालत ने विशेष रूप से यह गंभीर टिप्पणी की कि 2 सितंबर 2025 के उस आदेश का कोई भी उल्लेख कार्यवाही पुस्तिका में नहीं मिला, जिसके तहत द्वारपालक मूर्तियों की मरम्मत और सोने की परत चढ़ाने का कार्य चेन्नई स्थित स्मार्ट क्रिएशंस को सौंपा गया था।
अदालत ने कहा, “इस प्रकार की चूक अत्यंत गंभीर मामला है और गहन जांच की मांग करती है।” खंडपीठ ने जोड़ा कि मिनट्स बुक में समय पर और सही प्रविष्टियां न करना “संस्थान के भीतर गहरी व्यवस्थागत खामियों का संकेत देता है”, और संभवतः “अनियमितताओं को छिपाने का सुनियोजित प्रयास” भी हो सकता है।
अदालत ने यह भी कहा कि बेंगलुरु के व्यवसायी उन्नीकृष्णन पोटी, जो इस मामले में मुख्य आरोपी हैं, को चेन्नई में गोल्ड प्लेटिंग कार्य करने के लिए “पूरी स्वतंत्रता” दी गई थी। पोटी को हाल ही में गिरफ्तार किया गया है। अदालत ने कहा कि उन्होंने कुछ देवस्वम अधिकारियों की मिलीभगत से यह “संदिग्ध गतिविधियां” शुरू कीं, जो शुरू में “श्रद्धा का कार्य प्रतीत होता था, परंतु गहराई से देखने पर यह सुनियोजित छल प्रतीत होता है।”
खंडपीठ ने उल्लेख किया कि 1998-1999 में मैकडॉवेल एंड कंपनी लिमिटेड ने श्रीकोविल (गर्भगृह), हुण्डी, द्वारपालक मूर्तियों और अन्य कलाकृतियों पर पारंपरिक विधि से 30 किलोग्राम सोने की परत चढ़ाई थी। लेकिन 2019 में इन कलाकृतियों से काफी मात्रा में सोना हटाकर केवल सतही परत चढ़ाई गई।
जब यह पतली परत घिसने लगी तो “पूर्व में किए गए गबन को छिपाने के लिए मूर्तियों को चेन्नई भेजने का बहाना बनाया गया”, अदालत ने कहा। अदालत ने यह भी पाया कि 2025 में द्वारपालक मूर्तियों को बिना अनुमति के चेन्नई भेजा गया, क्योंकि अधिकारी “यह जानते थे कि यदि अदालत या वैधानिक नियमों का पालन किया गया तो 2019 की अनियमितताएं उजागर हो जाएंगी।”
खंडपीठ ने कहा, “जो भी अधिकारी इस प्रक्रिया में किसी भी स्तर पर शामिल थे—चाहे अनुमति देकर, सुविधा देकर या आंखें मूंदकर—उन्होंने पवित्र संपत्ति के अपवित्रीकरण और गबन के इस कृत्य में सहयोग किया है और वे सामूहिक रूप से इसके लिए जिम्मेदार हैं।”
अदालत ने SIT को यह अनुमति दी कि वह वैज्ञानिक परीक्षणों के जरिए यह पता लगाए कि 2019 और 2025 में सोने की कितनी मात्रा का उपयोग हुआ और कितना सोना गायब हुआ। इन परीक्षणों में द्वारपालक मूर्तियों और साइड पिलर्स की प्लेटों का वजन मापना और 1998 में चढ़ाए गए सोने की तुलना करना शामिल है।
SIT को यह प्रक्रिया 15 नवंबर तक पूरी करने का निर्देश दिया गया है, ताकि मंडल-मकरविलक्कु तीर्थ सीजन शुरू होने से पहले रिपोर्ट प्रस्तुत की जा सके।
खंडपीठ ने ये निर्देश स्वप्रेरित याचिका (suo motu writ) पर दिए, जिसके माध्यम से अदालत इस पूरे मामले की जांच की निगरानी कर रही है। इसके साथ ही, अदालत ने वह पुरानी कार्यवाही बंद कर दी जो मूर्तियों को बिना अनुमति चेन्नई भेजने के मामले में शुरू की गई थी।




