सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर 2025 को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अध्याय VI के तहत किसी अधिसूचित अंतरराज्यीय रूट (Notified Intra-State Route) के लिए स्वीकृत योजना (Approved Scheme) को उसी अधिनियम के अध्याय V की धारा 88 के अंतर्गत बने किसी अंतरराज्यीय परिवहन समझौते (IS-RT Agreement) पर प्राथमिकता प्राप्त होती है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (UPSRTC) द्वारा दाखिल अपीलों को स्वीकार करते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेशों को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि वह उन निजी ऑपरेटरों के अंतरराज्यीय परमिटों पर काउंटर सिग्नेचर करे जिनके रूट UPSRTC के अधिसूचित रूट से मिलते-जुलते थे।
पृष्ठभूमि
मुख्य अपील U.P. State Road Transport Corporation v. Kashmiri Lal Batra & Ors. (Civil Appeal No. 10522 of 2025) और इससे जुड़ी याचिकाओं में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, ग्वालियर पीठ के आदेशों को चुनौती दी गई थी। विवाद 21 नवंबर 2006 को मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के राज्य परिवहन प्राधिकरणों के बीच हुए IS-RT समझौते से उत्पन्न हुआ था।
इस समझौते की अनुसूची-B में कुछ रूट केवल मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम (MPSRTC) के संचालन हेतु सुरक्षित रखे गए थे।
समझौते की धारा 4(3) में कहा गया था कि यदि MPSRTC समाप्त हो जाता है और उसके रूट डीनोटिफाई हो जाते हैं, तो वे रूट स्वतः अनुसूची-A में सम्मिलित माने जाएंगे, जो निजी ऑपरेटरों के लिए निर्धारित है।
निजी ऑपरेटरों का कहना था कि MPSRTC बंद हो चुका है और उसने बसें चलाना बंद कर दिया है। इसलिए उन्होंने उन रूटों के लिए अस्थायी और बाद में स्थायी परमिट STA, मध्य प्रदेश से प्राप्त किए। लेकिन STA, उत्तर प्रदेश ने इन परमिटों पर काउंटर सिग्नेचर करने से इनकार कर दिया। इसके चलते ऑपरेटर उत्तर प्रदेश की सीमा में बसें नहीं चला पा रहे थे।
कश्मीरी लाल बत्रा ने जनहित याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट से STA, उत्तर प्रदेश को काउंटर सिग्नेचर करने का आदेश देने की मांग की। हाईकोर्ट ने 26 नवंबर 2014 को आदेश देते हुए एम.पी. सरकार को स्थायी परमिट जारी करने की प्रक्रिया पूर्ण करने और यूपी सरकार को 15 दिनों के भीतर उन पर हस्ताक्षर करने का निर्देश दिया। इस आदेश को UPSRTC ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
पक्षकारों के तर्क
UPSRTC की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि यह जनहित याचिका दुर्भावनापूर्ण थी और विधिक रूप से ग्राह्य नहीं। उन्होंने दलील दी कि –
“किसी भी निजी ऑपरेटर को अंतरराज्यीय रूट पर बस चलाने का अधिकार नहीं है यदि उसका कोई हिस्सा उस अधिसूचित रूट से मेल खाता है जो अध्याय VI के तहत स्वीकृत योजना का भाग है, जब तक कि योजना में विशेष रूप से अनुमति न दी गई हो।”
निजी ऑपरेटरों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता और बी.एस. राजेश अग्रजित ने कहा कि IS-RT समझौता उत्तर प्रदेश पर बाध्यकारी है। चूंकि MPSRTC समाप्त हो चुका है, इसलिए उसके रूट अपने आप अनुसूची-A में आ गए हैं। STA, यूपी के पास इस बाध्यकारी समझौते को नकारने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि धारा 100 की प्रोविजो के अनुसार यूपी ने केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति नहीं ली थी, जबकि यह रूट अंतरराज्यीय था।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने विचार के लिए मुख्य प्रश्न निर्धारित किया –
“क्या दो पड़ोसी राज्यों के बीच धारा 88 के तहत हुए IS-RT समझौते के आधार पर निजी ऑपरेटर को स्टेज कैरिज परमिट दिया जा सकता है जब उस अंतरराज्यीय रूट का एक हिस्सा ऐसे अंतरराज्यीय रूट से मेल खाता है जो अध्याय VI की योजना के तहत अधिसूचित है?”
खंडपीठ ने कहा कि यह प्रश्न अब “no longer res integra” है यानी इस पर पहले ही कानून स्पष्ट किया जा चुका है।
कोर्ट ने कहा कि अध्याय VI (राज्य परिवहन उपक्रमों से संबंधित विशेष प्रावधान) को अध्याय V (परिवहन वाहनों का नियंत्रण) पर अधिमान्यता (overriding effect) प्राप्त है, जैसा कि धारा 98 में स्पष्ट किया गया है।
धारा 98 कहती है –
“इस अध्याय के प्रावधान, अध्याय V या किसी अन्य कानून में निहित किसी भी असंगत प्रावधान के बावजूद प्रभावी होंगे।”
कोर्ट ने कहा कि धारा 88 के तहत बना IS-RT समझौता दो राज्यों के बीच मात्र एक agreement है, कानून नहीं। वहीं, अध्याय VI के तहत स्वीकृत योजना को वैधानिक बल (statutory force) प्राप्त है। अतः “स्वीकृत योजनाएं और अधिसूचित रूट स्पष्ट रूप से धारा 88 पर वरीयता प्राप्त करते हैं।”
प्रमुख नजीरें जिनका हवाला दिया गया
- T.N. Raghunatha Reddy v. Mysore State Transport Authority (1970) — तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अंतरराज्यीय समझौता “कानून नहीं” है और यह राष्ट्रीयकरण योजना को निरस्त नहीं कर सकता।
- S. Abdul Khader Saheb v. Mysore Revenue Appellate Tribunal (1973) — इस निर्णय ने उपरोक्त सिद्धांत को दोहराया कि स्वीकृत राष्ट्रीयकरण योजना अंतरराज्यीय समझौते पर वरीयता रखती है।
- Adarsh Travels Bus Services v. State of Uttar Pradesh (1985) — संविधान पीठ ने यह स्पष्ट किया कि निजी ऑपरेटर अधिसूचित रूट के किसी भी हिस्से पर बस नहीं चला सकते, भले ही यात्रा अंतरराज्यीय हो।
- T.V. Nataraj v. State of Karnataka (1994) — अदालत ने कहा कि जब तक योजना में स्पष्ट अनुमति न हो, विवाद अब “res integra” नहीं रहा।
निष्कर्ष और आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने UPSRTC की सभी अपीलें (Civil Appeal No. 10522 of 2025 और अन्य) स्वीकार कर लीं और हाईकोर्ट के आदेश रद्द कर दिए। निजी ऑपरेटरों की Writ Petition (C) No. 748 of 2024 खारिज कर दी गई।
फिर भी, न्यायालय ने दोनों राज्यों के रवैये पर असंतोष जताते हुए कहा कि —
“उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों की स्पष्ट उद्देश्यहीनता और अनुप्रयोग की कमी ने जनहित की अधिकतम प्राप्ति की संभावना को प्रभावित किया है।”
कोर्ट ने Adarsh Travels मामले में दी गई अंतिम टिप्पणियों का हवाला देते हुए दोनों राज्यों के परिवहन विभागों के प्रमुख सचिवों को निर्देश दिया कि वे तीन माह के भीतर बैठक कर IS-RT समझौते के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उपाय तय करें।
यदि एमपी अधिकारी यह प्रमाणित कर सकें कि MPSRTC वास्तव में समाप्त हो चुका है या समाप्ति के कगार पर है, तो रूटों को अनुसूची-A में शामिल कर समझौते को प्रभावी किया जाए। साथ ही कोर्ट ने दोनों राज्यों से कहा कि वे यह भी विचार करें कि क्या यात्रियों के हित में कुछ अंतरराज्यीय रूटों को आंशिक रूप से योजना से बाहर किया जा सकता है।
यदि सहमति नहीं बनती, तो एमपी राज्य “अपने भविष्य के कदम तय करने के लिए स्वतंत्र” होगा। इन निर्देशों के साथ कार्यवाही समाप्त कर दी गई।




