इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य में बढ़ती बंदरों की समस्या से निपटने के लिए चार सप्ताह के भीतर एक ठोस कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सरकार द्वारा मांगे गए दो महीने के समय को अस्वीकार करते हुए कहा कि इस मुद्दे को प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाए।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश किए गए प्रस्तावित अस्थायी कार्ययोजना को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार इस योजना पर विचार करे और पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) तथा राज्य पशु कल्याण बोर्ड से परामर्श लेकर ही कोई योजना तैयार करे, ताकि बंदरों के प्रति किसी भी प्रकार की क्रूरता न हो।
यह याचिका भाजपा नेता और समाजसेवी विनीते शर्मा तथा प्राजक्ता सिंगल, जो गाज़ियाबाद निवासी बी.टेक छात्रा हैं, की ओर से दायर की गई थी। उनकी तरफ से अधिवक्ता आकाश वशिष्ठा और पवन तिवारी ने पैरवी की। याचिकाकर्ताओं ने अदालत का ध्यान इस ओर दिलाया कि राज्य के लगभग हर ज़िले में एक तरफ जहां लोग बंदरों के आतंक से परेशान हैं, वहीं दूसरी तरफ भोजन की कमी के कारण बंदर भूख और कुपोषण से जूझ रहे हैं।
अधिवक्ता आकाश वशिष्ठा ने कहा, “हमने पूरे राज्य में बंदरों की समस्या से निपटने के लिए एक विस्तृत प्रस्तावित कार्ययोजना कोर्ट को सौंपी थी। साथ ही हमने यह भी सुझाव दिया कि नगर पालिका परिषद मोदीनगर द्वारा तैयार की गई योजना को राज्यभर में अपनाया जा सकता है।”
उन्होंने बताया कि, “कोर्ट ने हमारी सभी दलीलें स्वीकार करते हुए सरकार को राज्यभर में इस समस्या से निपटने को प्राथमिकता देने का निर्देश दिया।”
हाईकोर्ट ने इससे पहले 18 सितंबर 2025 को राज्य के प्रमुख सचिव (नगर विकास) को निर्देश दिया था कि वे यह बताएं कि स्थानीय निकायों को उनके दायित्वों का पालन सुनिश्चित करने के लिए उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959 और नगर पालिकाएं अधिनियम, 1916 के तहत क्या कदम उठाए गए हैं।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि बंदरों के बढ़ते आतंक से लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है, जबकि विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टाल रहे हैं। अदालत ने यह भी दर्ज किया कि जिला मजिस्ट्रेट, गाज़ियाबाद द्वारा भेजे गए पत्र (दिनांक 20 अगस्त 2025) के बावजूद राज्य सरकार ने इस समस्या पर कोई कार्ययोजना या एसओपी नहीं तैयार की है।
हाईकोर्ट ने 6 मई 2025 को केंद्र और राज्य सरकार सहित संबंधित निकायों—जैसे कि पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, यूपी सरकार, राज्य पशु कल्याण बोर्ड, डीएम गाज़ियाबाद, गाज़ियाबाद नगर निगम, लोनिवास, मोदीनगर, मुरादनगर, खोड़ा मकनपुर की नगर पालिकाएं, सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (SPCA) और जीडीए—को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि बंदर समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और क्या कार्ययोजना प्रस्तावित है।
याचिका में राज्यभर में बढ़ती बंदरों की आबादी, मनुष्य-बंदर संघर्ष, भोजन की कमी, भूख, और बंदरों की अमानवीय स्थिति जैसे मुद्दे उठाए गए हैं। इसमें तत्काल कार्ययोजना तैयार करने, पशु चिकित्सालय और पुनर्वास केंद्र स्थापित करने, बचाव वाहनों की व्यवस्था करने, जंगलों में पुनर्वास, पर्याप्त भोजन की व्यवस्था और 24×7 शिकायत निवारण पोर्टल स्थापित करने की मांग की गई है।
अदालत को यह भी बताया गया कि ए.डब्ल्यू.बी.आई., जो केंद्र सरकार की शीर्ष सलाहकार संस्था है, इस विषय पर उपाय करने का वैधानिक दायित्व रखती है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मनुष्य के अधिकारों और पशुओं के अधिकारों के बीच सामंजस्य स्थापित किया जाए—विशेष रूप से भोजन का अधिकार, भूख और कुपोषण से मुक्ति, तथा क्रूरता से सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

                                    
 
        


