समझौता लागू नहीं होने पर धारा 498A के तहत FIR रद्द नहीं हो सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पति द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें 2005 में दर्ज दहेज प्रताड़ना की एक FIR को रद्द करने की मांग की गई थी।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने मामले (CRL.M.C. 5386/2018) की अध्यक्षता करते हुए यह फैसला सुनाया कि FIR को एक निपटान समझौते (settlement agreement) के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह समझौता कभी निष्पादित (executed) या लागू (acted upon) नहीं हुआ। कोर्ट ने पाया कि समझौते की विफलता “पूरी तरह से याचिकाकर्ता [पति] के कारण हुई, जो फैमिली कोर्ट के समक्ष पेश होने में विफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप तलाक की याचिका खारिज हो गई।”

मामले की पृष्ठभूमि

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याचिकाकर्ता-पति और प्रतिवादी संख्या 2-पत्नी का विवाह 25.01.1991 को हुआ था और उनके दो बच्चे हैं। दोनों पक्ष 2005 से अलग रह रहे हैं।

26.10.2005 को, पत्नी ने दहेज प्रताड़ना की शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर PS तुगलक रोड, नई दिल्ली में FIR संख्या 0182/2005 (धारा 498A/406 IPC के तहत) दर्ज की गई। इस मामले में चार्जशीट दायर की जा चुकी है और मामला (क्रिमिनल केस नंबर 43291/2016) नई दिल्ली के विद्वान मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है।

समझौता और उसकी विफलता

पक्षों ने 04.10.2018 को अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया। पति ने सभी दावों (अतीत, वर्तमान और भविष्य) के एवज में कुल 37,00,000/- रुपये का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की।

इसके अनुसरण में, पक्षों ने जोधपुर, राजस्थान के फैमिली कोर्ट नंबर 1 के समक्ष हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए एक संयुक्त याचिका दायर की। पहला मोशन (first motion) 05.10.2018 को दर्ज किया गया। याचिकाकर्ता ने 30,00,000/- रुपये की छह FDR फैमिली कोर्ट के समक्ष जमा कीं। समझौते की शर्तों के अनुसार, यह राशि वर्तमान FIR के रद्द होने के बाद ही जारी की जानी थी। अतिरिक्त 7,00,000/- रुपये का भुगतान दूसरे मोशन (second motion) के समय किया जाना था।

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पति ने इसी समझौते के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट में FIR रद्द करने के लिए वर्तमान याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ता (पति) की दलीलें

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि पहले मोशन के बाद, वह 08.09.2019 के बाद दूसरी मोशन की सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सका। उसने “दुबई में जरूरी काम” और उसके बाद COVID-19 महामारी का हवाला दिया।

उसकी अनुपस्थिति के कारण, फैमिली कोर्ट ने 01.09.2021 को आपसी सहमति वाली तलाक याचिका को ‘नॉन-प्रॉसिक्यूशन’ (non-prosecution) के लिए खारिज कर दिया। उसकी बहाली (restoration) की अर्जी भी 21.10.2022 को फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने 30,00,000/- रुपये जमा करके “समझौते के अपने हिस्से का पालन” किया था और वह “शेष 7,00,000/- रुपये का भुगतान करने के लिए हमेशा तैयार” था। उसने तर्क दिया कि पत्नी द्वारा अब FIR रद्द करने के लिए सहमति देने से इनकार करना “अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग” है।

प्रतिवादी (पत्नी) की दलीलें

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प्रतिवादी संख्या 2 ने एक विस्तृत जवाब दायर करते हुए कहा कि समझौता याचिकाकर्ता द्वारा “अपने दायित्वों को पूरा नहीं करने” के कारण “सफल नहीं हो सका।”

उसने कहा कि उसने “मजबूरन परिस्थितियों” (compelling circumstances) के कारण समझौते के लिए सहमति दी थी, क्योंकि उसकी बेटी विवाह योग्य आयु की हो गई थी। हालांकि, उसे “शादी की तारीख नजदीक आने पर भी समझौते की राशि जारी करने से इनकार कर दिया गया।”

उसने प्रस्तुत किया कि उसे अपनी बेटी की शादी के लिए खुद के साधनों और उधार लेकर धन की व्यवस्था करनी पड़ी, और याचिकाकर्ता ने “एक पिता के रूप में कोई कर्तव्य नहीं” निभाया। पत्नी ने पुष्टि की कि उसने 22.11.2022 को हाईकोर्ट के समक्ष “वर्तमान FIR को रद्द करने के लिए अपनी असहमति” दर्ज करा दी थी।

हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने दलीलों को सुनने और रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद पाया कि FIR रद्द करने की याचिका पूरी तरह से 2018 के समझौते पर आधारित थी।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अपने बयानों से नोट किया कि “न तो 7,00,000/- रुपये की शेष राशि कभी जमा की गई और न ही 30,00,000/- रुपये की राशि कभी प्रतिवादी संख्या 2 को जारी की गई।”

फैसले में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि जब पत्नी ने बेटी की शादी के लिए पैसे मांगे तो याचिकाकर्ता “आगे नहीं आया”। कोर्ट ने माना कि समझौता कभी लागू नहीं हुआ। जस्टिस कृष्णा ने कहा, “याचिका में दिए गए बयानों से ही पता चलता है कि यद्यपि पार्टियों के बीच एक समझौता हुआ था, लेकिन इसका कभी कोई कार्यान्वयन (implementation) या निष्पादन (execution) नहीं हुआ।”

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कोर्ट ने समझौते की विफलता का दोष सीधे तौर पर याचिकाकर्ता पर डालते हुए कहा, “यह याचिकाकर्ता है, जो दूसरे मोशन के लिए बयान देने के लिए जोधपुर के फैमिली कोर्ट में पेश होने में विफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप समझौते की शर्तों के अनुसार प्रतिवादी संख्या 2 को कोई पैसा जारी नहीं हुआ।”

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “उपरोक्त के मद्देनजर, ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि इस समझौते पर कभी याचिकाकर्ता द्वारा अमल किया गया हो; केवल कुछ राशि के चेक जमा करना, जो आज तक प्रतिवादी संख्या 2 को जारी नहीं किए गए हैं क्योंकि आपसी सहमति से तलाक नहीं हो पाया, वह भी पूरी तरह से याचिकाकर्ता के कारण…”

यह मानते हुए कि “यह नहीं माना जा सकता कि पार्टियों ने समझौते पर अमल किया है,” हाईकोर्ट ने “वर्तमान FIR को समझौते के आधार पर रद्द करने का कोई आधार नहीं” पाया। याचिका को “गुण-दोष रहित (being without merits)” मानते हुए खारिज कर दिया गया।

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