इलाहाबाद हाईकोर्ट : एफआईआर रद्द करने की शक्ति का प्रयोग बेहद सावधानी से हो; नए तथ्यों पर आधारित दूसरी एफआईआर पर प्रतिबंध नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एफआईआर या आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग बहुत ही सीमित परिस्थितियों में और अत्यंत सावधानी के साथ किया जाना चाहिए — केवल उन्हीं मामलों में, जहाँ शिकायत में कोई संज्ञेय अपराध उजागर नहीं होता या जहाँ जांच को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।

न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह और न्यायमूर्ति लक्ष्मी कांत शुक्ला की खंडपीठ ने यह टिप्पणी पारुल बुधराजा व अन्य तीन याचिकाकर्ताओं की याचिका खारिज करते हुए की, जिसमें उन्होंने वर्ष 2024 में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि impugned एफआईआर समान तथ्यों और आरोपों पर आधारित दूसरी एफआईआर है, जो दुर्भावनापूर्ण इरादे से और मूल लेन-देन के लगभग पाँच वर्ष बाद दर्ज की गई। उनका कहना था कि शुभम अग्रिहोत्री द्वारा दर्ज कराई गई पहली एफआईआर (वर्ष 2021) की पहले ही जांच हो चुकी थी, और उसमें उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं पाया गया था।

Video thumbnail

याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले टी. टी. एंटनी बनाम स्टेट ऑफ केरल (2001) पर भरोसा जताते हुए कहा कि समान तथ्यों पर दूसरी एफआईआर दर्ज करना कानूनन प्रतिबंधित है।

READ ALSO  नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि है: सुप्रीम कोर्ट

शिकायतकर्ता की ओर से दलील दी गई कि वर्ष 2024 की एफआईआर पूरी तरह अलग घटना से संबंधित है। इसमें आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ताओं ने जालसाजी कर फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया — जिसमें झूठा घोषणा पत्र और वितरक आवेदन पत्र शामिल हैं, जिन पर नकली हस्ताक्षर और फर्जी नोटरी सील लगाई गई थी — ताकि वे स्वयं को वर्ष 2019 के निवेश योजना से जुड़े मुख्य धोखाधड़ी मामले की जांच से बचा सकें।

READ ALSO  Rights and Needs of a Child with a Disability Should be a Valid Consideration in Transfer Matters: Allahabad High Court

यह भी कहा गया कि ये कृत्य पहली एफआईआर के दर्ज होने के बाद किए गए, इसलिए यह नए अपराध हैं जिनकी स्वतंत्र जांच जरूरी है।

हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दूसरी एफआईआर पर प्रतिबंध केवल तब लागू होता है जब दोनों एफआईआर एक ही घटना या लेन-देन से जुड़ी हों।
न्यायालय ने कहा —

“यदि बाद की एफआईआर नए और भिन्न तथ्यों के आधार पर अलग अपराधों का खुलासा करती है, तो ऐसी एफआईआर दर्ज करना विधिसम्मत है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि टी. टी. एंटनी बनाम स्टेट ऑफ केरल (2001) में सुप्रीम कोर्ट का फैसला केवल एक ही घटना या लेन-देन से संबंधित दूसरी एफआईआर को रोकता है, लेकिन यह भिन्न घटनाओं, बड़े षड्यंत्र या नए तथ्यों की खोज के मामलों में लागू नहीं होता।

पीठ ने आगे कहा —

READ ALSO  भरण-पोषण याचिका में मानसिक स्थिति की जांच का कोई औचित्य नहीं: केरल हाईकोर्ट

“समानता के सिद्धांत (‘rule of sameness’) को व्यावहारिक रूप से लागू किया जाना चाहिए, और यदि दूसरी एफआईआर का उद्देश्य और दायरा पहली एफआईआर से भिन्न है, तो उस पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा।”

हाईकोर्ट ने चारों याचिकाकर्ताओं की याचिका खारिज करते हुए कहा कि जालसाजी और फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल के आरोप अलग और नए अपराध हैं, जिनकी जांच आवश्यक है।
इस प्रकार, अदालत ने यह माना कि 2024 की एफआईआर वैध है और इसे टी. टी. एंटनी मामले के सिद्धांत से रोका नहीं जा सकता।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles