सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह 4 नवंबर को उन स्थानांतरित याचिकाओं पर सुनवाई करेगा जिनमें केंद्र के नए “प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग एक्ट, 2025” को चुनौती दी गई है। यह कानून “ऑनलाइन मनी गेम्स” पर प्रतिबंध लगाता है और उनसे जुड़ी बैंकिंग सेवाओं व विज्ञापनों पर रोक लगाता है।
न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने यह तारीख तय की जब वरिष्ठ अधिवक्ता सी. आर्यमन सुंदरम और अरविंद पी. दातार, जो पहले विभिन्न उच्च न्यायालयों में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे, ने सुनवाई की तारीख को लेकर मामला उल्लेख किया।
सुंदरम ने बताया कि यह मामला पहले मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की पीठ के समक्ष उल्लेख किया गया था, और उन्होंने संकेत दिया कि उचित होगा यदि वही पीठ (न्यायमूर्ति पारदीवाला की) 4 नवंबर को मामले की सुनवाई करे। इस पर न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, “तो फिर हम ही सुनेंगे।”
“प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग एक्ट, 2025” केंद्र सरकार का पहला कानून है जो पूरे देश में वास्तविक पैसों पर आधारित ऑनलाइन गेमिंग—जैसे फैंटेसी स्पोर्ट्स और ई-स्पोर्ट्स—पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
इस कानून को दिल्ली, कर्नाटक और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि यह न्यायालयों द्वारा पहले से वैध माने गए कौशल-आधारित (skill-based) खेलों पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाता है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) में प्रदत्त किसी भी पेशे या वैध व्यापार करने के अधिकार का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में यह माना है कि रमी (rummy) या फैंटेसी स्पोर्ट्स जैसे कौशल-आधारित खेल जुआ नहीं हैं, इसलिए उन पर प्रतिबंध असंवैधानिक है।
8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका को मंजूरी दी थी जिसमें अनुरोध किया गया था कि इस कानून को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएँ विभिन्न उच्च न्यायालयों से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दी जाएँ ताकि विरोधाभासी निर्णयों से बचा जा सके।
स्थानांतरित मामलों में शामिल हैं:
- हेड डिजिटल वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ (कर्नाटक हाईकोर्ट),
- बघीरा कैरम (ओपीसी) प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ (दिल्ली हाईकोर्ट),
- क्लबबूम 11 स्पोर्ट्स एंड एंटरटेनमेंट प्रा. लि. बनाम भारत संघ (मध्य प्रदेश हाईकोर्ट)।
तब न्यायमूर्ति पारदीवाला की पीठ ने संबंधित उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया था कि वे पूरे केस रिकॉर्ड और सभी अंतःवर्ती आवेदन (interlocutory applications) एक सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट को भेज दें। अदालत ने कहा था, “समय बचाने के लिए यह स्थानांतरण डिजिटल रूप से किया जाए।”
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने यह स्थानांतरण याचिका दायर की थी, यह कहते हुए कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित कई याचिकाएँ समान या लगभग समान संवैधानिक प्रश्नों से जुड़ी हैं। इसलिए, “किसी भी मतभेद या एकाधिक कार्यवाहियों से बचने” के लिए उन्हें एक ही मंच पर सुना जाना आवश्यक है।
केंद्र का कहना है कि यह कानून ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में हो रहे जुए जैसे कार्यों को रोकने और इस क्षेत्र को विनियमित करने के लिए लाया गया है।
इस कानून के तहत ऑनलाइन मनी गेम्स की पेशकश या उनमें भाग लेना, चाहे वे कौशल-आधारित हों या भाग्य-आधारित, संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध माना गया है।
यह विधेयक 20 अगस्त 2025 को लोकसभा में पेश किया गया था।
सिर्फ दो दिनों में इसे दोनों सदनों ने वॉइस वोट से पारित किया और 22 अगस्त 2025 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई।
अब सुप्रीम कोर्ट 4 नवंबर को यह तय करेगा कि यह कानून संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है या इसमें संशोधन की आवश्यकता है, ताकि वैध कौशल-आधारित ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स के अधिकार सुरक्षित रह सकें।




