‘सालों की कड़वाहट और तल्खी ने उनके रिश्ते को परिभाषित किया है’: सुप्रीम कोर्ट ने शादी भंग की, ₹1 करोड़ स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक विवाह को भंग कर दिया है। इस मामले में पति-पत्नी पिछले 15 वर्षों से अधिक समय से अलग रह रहे थे।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने क्रिमिनल अपील संख्या 1595 ऑफ 2025 पर सुनवाई करते हुए यह माना कि यह रिश्ता “पूरी तरह से टूट चुका है” और “एक ऐसे कानूनी रिश्ते को बनाए रखने का कोई मतलब नहीं है जिसका कोई अर्थ नहीं बचा है।”

कोर्ट ने पति (प्रतिवादी) को 1,00,00,000/- (एक करोड़ रुपये) की राशि स्थायी गुजारा भत्ता (permanent alimony) के तौर पर देने का आदेश दिया है। इस भुगतान के साथ ही, दोनों पक्षों के बीच इस शादी से उत्पन्न होने वाले सभी दीवानी और आपराधिक मामले “रद्द और बंद” (quashed and closed) माने जाएंगे।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील 3 जुलाई 2023 को राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर के एक फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। दोनों पक्षों का विवाह 5 अक्टूबर 2009 को हुआ था।

फैसले में दर्ज तथ्यों के अनुसार, पत्नी (अपीलकर्ता) ने अपने ससुराल वालों पर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का आरोप लगाया था, जिसके चलते उन्होंने 15 अप्रैल 2010 को वैवाहिक घर छोड़ दिया था। 28 दिसंबर 2010 को पत्नी ने अपने मायके में एक बेटे को जन्म दिया।

इसके बाद, 9 जुलाई 2013 को पत्नी ने गुजारा भत्ता के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया। 16 जनवरी 2019 को, उन्होंने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (DV Act) की धारा 12 के तहत भी एक अर्जी दी।

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निचली अदालतों का घटनाक्रम

ट्रायल कोर्ट ने 16 जनवरी 2019 के अपने आदेश में पति को निम्नलिखित भुगतान करने का निर्देश दिया था:

  • किराया, पानी और बिजली के लिए 5,000/- रुपये प्रति माह।
  • पत्नी के गुजारा भत्ते के लिए 10,000/- रुपये प्रति माह।
  • नाबालिग बच्चे के गुजारा भत्ते के लिए 5,000/- रुपये प्रति माह।
  • बच्चे की शिक्षा के लिए 5,000/- रुपये प्रति माह।
  • DV Act की धारा 22 के तहत मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक पीड़ा के लिए 4,00,000/- रुपये का मुआवजा।

ट्रायल कोर्ट ने DV Act की धारा 21 के तहत बच्चे की कस्टडी भी पत्नी को दी थी। इस आदेश को 29 जुलाई 2021 को अपीलीय अदालत ने बरकरार रखा था।

इस बीच, फैमिली कोर्ट ने 15 अक्टूबर 2022 को CrPC की कार्यवाही में पति को अतिरिक्त 2,000/- रुपये प्रति माह पत्नी को और 1,000/- रुपये प्रति माह बच्चे को देने का आदेश दिया।

हाईकोर्ट का आदेश

दोनों पक्षों ने इन फैसलों के खिलाफ हाईकोर्ट में रिवीजन याचिकाएं दायर कीं। हाईकोर्ट ने 3 जुलाई 2023 के अपने फैसले में:

  1. पत्नी की रिवीजन याचिका खारिज कर दी।
  2. पति की CrPC (धारा 125) वाली याचिका को स्वीकार करते हुए 15 अक्टूबर 2022 के फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और पत्नी की अर्जी खारिज कर दी।
  3. पति की DV Act वाली याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए DV Act की धारा 22 के तहत दिए गए 4,00,000/- रुपये के मुआवजे को रद्द कर दिया।
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पत्नी ने हाईकोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि पति द्वारा दायर की गई एक SLP को कोर्ट पहले ही 19 मार्च 2025 को खारिज कर चुकी है और पति को गुजारा भत्ते का बकाया चुकाने का निर्देश दिया गया था।

कोर्ट ने इस तथ्य पर गौर किया कि दोनों पक्ष 15 अप्रैल 2010 से, यानी “पंद्रह साल से अधिक समय से” अलग रह रहे हैं। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र (Supreme Court Mediation Centre) के माध्यम से सुलह का प्रयास भी “कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दे सका।”

बेंच ने माना कि यह शादी पूरी तरह से टूट चुकी है। कोर्ट ने कहा: “सालों की कड़वाहट और तल्खी ने उनके रिश्ते को परिभाषित किया है, और पत्नी द्वारा तलाक का विरोध करने के बावजूद, हम पाते हैं कि उनके बीच कोई वैवाहिक बंधन नहीं बचा है।”

यह निष्कर्ष निकालते हुए कि “एक ऐसे कानूनी रिश्ते को बनाए रखने का कोई मतलब नहीं है जिसका कोई अर्थ नहीं बचा है,” कोर्ट ने इसे “संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करके तलाक की डिक्री देने के लिए एक उपयुक्त मामला” (fit case) पाया।

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कोर्ट ने पति द्वारा 1 करोड़ रुपये स्थायी गुजारा भत्ता के तौर पर देने की सहमति को रिकॉर्ड पर लिया। बेंच ने इस राशि को “स्थायी गुजारा भत्ता और सभी लंबित बकाये के निपटारे हेतु एक उचित, निष्पक्ष और वाजिब रकम” माना।

फैसले में यह निर्देश दिया गया है कि यह राशि “नाबालिग बच्चे के दावों सहित, दोनों पक्षों के बीच सभी दावों का पूर्ण और अंतिम निपटान” (full and final settlement) मानी जाएगी और इसके मिलने के बाद कोई भी पक्ष एक-दूसरे पर कोई और दावा नहीं करेगा।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया: “यह पिता को बच्चे की शिक्षा के लिए (भविष्य में) योगदान करने से नहीं रोकेगा।”

अपने अंतिम आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त पर शादी को भंग कर दिया कि पति 29 अक्टूबर 2025 (आदेश की तारीख) से तीन महीने के भीतर 1 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करेगा। भुगतान का प्रमाण रजिस्ट्री में जमा करने के बाद ही तलाक की डिक्री तैयार की जाएगी।

इस आदेश के आधार पर, कोर्ट ने इस विवाह से उत्पन्न होने वाली सभी लंबित दीवानी और आपराधिक कार्यवाहियों को भी रद्द कर दिया और अपील का निस्तारण किया।

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