मद्रास हाईकोर्ट ने एक पत्नी को दिए जाने वाले अंतरिम भरण-पोषण (interim maintenance) के आदेश को संशोधित कर दिया है। कोर्ट ने यह राशि 15,000 रुपये प्रति माह से घटाकर 10,000 रुपये प्रति माह कर दी। यह निर्णय इसलिए आया क्योंकि कोर्ट ने पाया कि पत्नी नौकरीपेशा थी और “1 लाख रुपये से अधिक का सकल वेतन” (gross salary) कमा रही थी, लेकिन उसने इस तथ्य को भरण-पोषण के लिए दिए गए अपने हलफनामे में “छिपाया” (suppressed) था।
यह आदेश न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी ने 25 अक्टूबर, 2025 को एक सिविल रिवीजन पिटीशन (CRP.No.4112 of 2024) पर सुनवाई करते हुए सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता (पति) ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 115 के तहत यह सिविल रिवीजन पिटीशन दायर की थी, जिसमें अलंदूर के सब-जज (Sub-Judge) के 15.06.2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
अंतरिम भरण-पोषण का यह आदेश एक I.A.No.01 of 2022 में दिया गया था, जिसे पत्नी (प्रतिवादी) ने पति द्वारा दाम्पत्य अधिकारों की बहाली (restitution of conjugal rights) के लिए दायर मुख्य याचिका (H.M.O.P.No.298 of 2021) में दायर किया था। पत्नी ने अपनी अर्जी में पति के वेतन का 1/3 हिस्सा अंतरिम भरण-पोषण के रूप में मांगा था।
निचली अदालत (सब-जज) ने पत्नी को 14.03.2022 से मुख्य H.M.O.P. के निपटारे तक 15,000 रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया था। निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि दंपति का एक पांच साल का बेटा है और यह राशि “दिन-प्रतिदिन बढ़ती महंगाई” (day to day escalation of costs) और “कम उम्र के स्कूल जाने वाले बच्चे के रखरखाव” के लिए आवश्यक थी।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता-पति के वकील ने तर्क दिया कि प्रतिवादी-पत्नी ने “अपने लाभप्रद रोजगार को छिपाया” (suppressed her gainful employment) था। उन्होंने दावा किया कि पत्नी ने ऐसा करते हुए यह कहा कि पति केवल 8,000 रुपये कमाता है, जो उसके और नाबालिग बेटे के लिए अपर्याप्त है।
याचिकाकर्ता के वकील ने दिसंबर 2022 की एक वेतन पर्ची (pay slip) पेश की, जो “इस तथ्य का सबूत थी कि प्रतिवादी कॉग्निजेंट में कार्यरत है” (जुलाई 2018 से) और उसकी “शुद्ध वेतन (net salary) 87,876/- रुपये है।” इस आधार पर, पति ने तर्क दिया कि पत्नी ने “झूठी गवाही” (perjury) दी थी और वह “किसी भी भरण-पोषण की हकदार नहीं” थी।
इसके विपरीत, प्रतिवादी-पत्नी के वकील ने प्रस्तुत किया कि मुख्य H.M.O.P. का निपटारा पहले ही हो चुका है। उन्होंने तर्क दिया कि “हलफनामे को पढ़ने से यह पर्याप्त रूप से स्पष्ट होता है कि प्रतिवादी द्वारा मांगा गया भरण-पोषण केवल नाबालिग बेटे के लिए था, न कि खुद के लिए,” भले ही यह “विशेष रूप से नहीं कहा गया” (specifically set out) हो।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष
दोनों पक्षों को सुनने के बाद, न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी ने पाया कि पत्नी की आय छिपाने के संबंध में याचिकाकर्ता के वकील का तर्क सही था। कोर्ट ने कहा, “जैसा कि याचिकाकर्ता के वकील ने सही बताया है, प्रतिवादी ने अपनी वास्तविक आय को अपने हलफनामे में छिपाया है।”
फैसले में आगे कहा गया, “दिसंबर 2022 की वेतन पर्ची से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी लाभप्रद रूप से नियोजित है और 1 लाख रुपये से अधिक का सकल वेतन (gross salary) कमा रही है।”
हाईकोर्ट ने पत्नी की मूल भरण-पोषण याचिका पर भी टिप्पणी की और पाया कि “उसमें दिए गए कथन अस्पष्ट (vague) हैं और यह संकेत भी नहीं देते कि प्रतिवादी अपने लिए भी भरण-पोषण चाहती है या केवल अपने नाबालिग बच्चे के लिए।”
कोर्ट ने पत्नी के कर्तव्य पर जोर देते हुए कहा, “प्रतिवादी, नाबालिग बेटे की मां होने के नाते, नाबालिग बेटे के भरण-पोषण और देखभाल के लिए समान रूप से उत्तरदायी (equally liable) है।”
अंतिम निर्णय
इस निष्कर्ष पर पहुंचते हुए कि पत्नी भरण-पोषण की अर्जी दाखिल करते समय भी 1 लाख रुपये से अधिक कमा रही थी, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को संशोधित कर दिया।
हाईकोर्ट ने रिवीजन पिटीशन का निपटारा करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:
- अलंदूर की सब-कोर्ट के आदेश को संशोधित किया जाता है और अंतरिम भरण-पोषण “10,000/- रुपये नियत” किया जाता है।
- याचिकाकर्ता-पति “5,000/- रुपये प्रति माह के समायोजन (adjustment) की मांग करने का हकदार” है (प्रासंगिक अवधि के लिए), जो पति के इस दावे को दर्शाता है कि वह पहले से ही यह राशि दे रहा था। यह समायोजन भुगतान का प्रमाण (proof of payment) प्रस्तुत करने के अधीन होगा।
- याचिकाकर्ता-पति को निर्देश दिया गया कि वह समायोजन के बाद बची हुई शेष राशि का भुगतान “इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर” करे।
- खर्च (costs) को लेकर कोई आदेश नहीं दिया गया।




