भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित करते हुए न्यायिक औचित्य पर एक कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यद्यपि हाईकोर्ट संवैधानिक अदालतें हैं, “लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट किसी मामले की सुनवाई कर रहा हो, तो यह अपेक्षित है कि हाईकोर्ट (उस मामले से) खुद को दूर रखें।”
यह टिप्पणी तब आई जब सीजेआई बी आर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक आदेश पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट के उस आदेश ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण के संबंध में एक वरिष्ठ IFS अधिकारी, श्री राहुल, के खिलाफ अभियोजन मंजूरी (prosecution sanction) पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सक्रिय रूप से निगरानी कर रहा है।
बेंच, जिसने इस घटनाक्रम पर “अत्यंत क्षुब्ध” (deeply perturbed) होने की बात कही, ने अधिकारी की रिट याचिका को हाईकोर्ट से अपने पास स्थानांतरित कर लिया और अधिकारी को अदालत की अवमानना का नोटिस भी जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारी के हाईकोर्ट जाने के कदम और हाईकोर्ट के हस्तक्षेप करने के फैसले, दोनों पर गहरी अस्वीकृति व्यक्त की।
बेंच के आदेश में कहा गया: “इसमें कोई संदेह नहीं कि हाईकोर्ट एक संवैधानिक अदालत है और इस कोर्ट से निम्न (inferior) नहीं है। हालांकि, न्यायिक मामलों में, जब यह कोर्ट किसी मामले की सुनवाई कर रहा हो (seized of the matter), तो हाईकोर्ट से यह अपेक्षित है कि वे खुद को दूर रखें।”
कोर्ट ने पाया कि अधिकारी, श्री राहुल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए “इस कोर्ट की कार्यवाही का लगातार अनुसरण कर रहे थे” और उन्हें आदेशों और टिप्पणियों की जानकारी थी। बेंच ने टिप्पणी की कि यदि उन्हें लगता कि कार्यवाही उनके प्रतिकूल है तो “उन्हें इन कार्यवाहियों में हस्तक्षेप करने से किसी ने नहीं रोका था।”
इसके बजाय, अधिकारी ने हाईकोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह कदम “लगभग इन कार्यवाहियों में हस्तक्षेप के बराबर है।”
कोर्ट ने यह भी संज्ञान लिया कि हाईकोर्ट के स्थगन आदेश ने “इस कोर्ट के समक्ष लंबित कार्यवाही का उल्लेख करना भी आवश्यक नहीं समझा,” जबकि अधिकारी के वकील ने खुद माना कि उन कार्यवाहियों का जिक्र रिट याचिका में किया गया था।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह घटनाक्रम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जा रही एक स्वत: संज्ञान (suo moto) कार्रवाई से उपजा है, जिसकी सीबीआई जांच भी चल रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर, 2025 को एक सुनवाई के दौरान राज्य (उत्तराखंड) से सवाल किया था कि “एक अधिकारी को विशेष बर्ताव क्यों दिया जा रहा है,” क्योंकि श्री राहुल के खिलाफ अभियोजन मंजूरी रोक दी गई थी जबकि अन्य को मंजूरी दे दी गई थी। कोर्ट की “मौखिक टिप्पणियों” (oral observations) के बाद, राज्य सरकार ने 16 सितंबर, 2025 को मंजूरी दे दी।
सुप्रीम कोर्ट को न्याय मित्र (Amicus Curiae) द्वारा सूचित किया गया कि इस मंजूरी के तुरंत बाद, श्री राहुल ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में रिट याचिका (Crl) संख्या 1220/2025 दायर की। 14 अक्टूबर, 2025 को हाईकोर्ट के एक सिंगल जज ने याचिका स्वीकार कर ली और “अभियोजन मंजूरी के प्रभाव और संचालन” पर रोक लगा दी।
अधिकारी के वकील की दलीलें
श्री राहुल की ओर से स्वत: (suo moto) उपस्थित हुए वरिष्ठ वकील श्री तनवीर अहमद ने दलील दी कि यह मंजूरी “कानूनी रूप से पूरी तरह अस्वीकार्य” (totally impermissible in law) थी। उन्होंने तर्क दिया कि मंजूरी देने वाले प्राधिकरण के पास “4 अगस्त, 2024 के उस आदेश की समीक्षा करने का अधिकार क्षेत्र नहीं था, जिसके द्वारा मंजूरी देने से इनकार कर दिया गया था।” उन्होंने कहा कि अधिकारी “कानूनी उपाय का सहारा लेने के अपने अधिकार” (right to legal remedy) का प्रयोग कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
अपने विश्लेषण के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित बाध्यकारी निर्देश जारी किए:
- केस का स्थानांतरण: रिट याचिका (Crl) संख्या 1220/2025 की कार्यवाही “उत्तराखंड हाईकोर्ट से वापस ली जाती है और इस कोर्ट में स्थानांतरित की जाती है।”
- हाईकोर्ट के आदेश पर रोक: सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि “अगले आदेश तक, उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा 14.10.2025 को पारित आदेश… पर रोक रहेगी।”
- अवमानना नोटिस: कोर्ट ने श्री राहुल (IFS) को “11.11.2025 को इस कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने और यह कारण बताने के लिए नोटिस जारी किया कि क्यों न उनके खिलाफ इस कोर्ट की अवमानना के लिए कार्रवाई शुरू की जाए।”
सुनवाई के अन्य प्रमुख घटनाक्रम
पुणे की BBPP रोड परियोजना पर रोक एक अलग आवेदन (I.A. No. 218391 of 2024) में, कोर्ट ने निर्देश दिया कि पुणे नगर निगम (PMC) अपनी प्रस्तावित बाल-भारती पौड फाटा (BBPP) सड़क परियोजना, जो “वेताल हिल/लॉ कॉलेज हिल्स” से होकर गुजरेगी, को राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) से पर्यावरण मंजूरी (EC) प्राप्त किए बिना शुरू नहीं कर सकता। कोर्ट ने “समान संरेखण” (similar alignment) के संबंध में 2020 के NGT आदेश का हवाला दिया, जिसे 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने खुद बरकरार रखा था।
दिल्ली रिज मामले में फैसला सुरक्षित दिल्ली रिज (I.A. NO. 117204 OF 2024) से संबंधित मामले में, बेंच ने न्याय मित्र और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।




