दिल्ली हाईकोर्ट ने शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता मधु किश्वर के खिलाफ दर्ज 17 साल पुराने हत्या के प्रयास के मामले को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह एफआईआर “बदले की भावना से दायर की गई एक दुर्भावनापूर्ण प्रतिशोधात्मक कार्रवाई (counter blast)” थी और इसे जारी रखना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
न्यायमूर्ति अमित महाजन की एकल पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि केवल इसलिए कि शिकायत में संज्ञेय अपराध का आरोप लगाया गया है, यह पर्याप्त नहीं है कि आपराधिक कानून की मशीनरी को किसी की निजी दुश्मनी के लिए चलाया जाए।
यह विवाद 31 दिसंबर 2007 को दक्षिण दिल्ली के सेवा नगर मार्केट, कोटला मुबारकपुर क्षेत्र में हुई झड़प से जुड़ा है। शिकायतकर्ता के परिवार ने आरोप लगाया था कि मधु किश्वर ने अपने चालक को आदेश दिया कि वह कार से उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को कुचल दे। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि किश्वर और उनके साथियों ने शिकायतकर्ता और उसके परिवार के साथ मारपीट की, जिससे गंभीर चोटें आईं।
इस घटना के बाद जून 2008 में किश्वर के खिलाफ धारा 307 (हत्या का प्रयास), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
किश्वर की ओर से यह दलील दी गई कि यह एफआईआर उनके द्वारा पहले दर्ज कराई गई एफआईआर का प्रतिशोध (counter blast) थी। उनके वकील ने बताया कि किश्वर को उस क्षेत्र में नागरिक अनुशासन की निगरानी और अवैध निर्माण की रिपोर्टिंग का अधिकार था। जब उन्होंने और कुछ स्वयंसेवकों ने बाजार में अवैध कब्जों की तस्वीरें लेनी शुरू कीं, तो शिकायतकर्ता और उसके परिजन उन पर टूट पड़े और मारपीट की।
हाईकोर्ट ने यह रेखांकित किया कि इस मामले की शिकायतकर्ता को पहले ही उस एफआईआर में दोषी ठहराया जा चुका है, जो मधु किश्वर ने दर्ज कराई थी।
न्यायमूर्ति महाजन ने कहा,
“भले ही शिकायतकर्ता के आरोपों को सबसे ऊँचे स्तर पर लिया जाए, परंतु यह ध्यान में रखते हुए कि उसी घटना से उत्पन्न मामले में शिकायतकर्ता को दोषसिद्ध किया जा चुका है, यह अधिकतम आत्मरक्षा या झड़प की स्थिति मानी जा सकती है, जब शिकायतकर्ता ने अवैध रूप से भीड़ बनाकर याचिकाकर्ता और उसके ड्राइवर को चोट पहुंचाई थी।”
अदालत ने कहा कि केवल इस आधार पर कि शिकायत में संज्ञेय अपराध का आरोप है, आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना “न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग” होगा।
“यह एफआईआर बदले की भावना से दायर की गई प्रतीत होती है और इसका उद्देश्य याचिकाकर्ता से प्रतिशोध लेना था,” अदालत ने कहा।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि ट्रायल कोर्ट के फैसले से स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता और अन्य आरोपियों ने “फोटोग्राफी रोकने के उद्देश्य से अवैध जमावड़ा बनाया और याचिकाकर्ता व उसके ड्राइवर की पिटाई की,” जिसके लिए उन्हें दोषी ठहराया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह मामला प्रतिशोधात्मक और दुर्भावनापूर्ण था तथा इसे जारी रखना न्याय के विपरीत होगा।
न्यायमूर्ति महाजन ने आदेश दिया कि मधु किश्वर के खिलाफ दर्ज यह एफआईआर रद्द की जाती है, क्योंकि “उसी घटना से संबंधित शिकायतकर्ता की दोषसिद्धि अब अंतिम रूप से स्थिर हो चुकी है और ऐसे में यह कार्यवाही कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगी।”




