₹34,926 करोड़ बैंक धोखाधड़ी मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कपिल वाधवान की जमानत याचिका पर CBI से मांगा जवाब

 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को डीएचएफएल (Dewan Housing Finance Corporation Ltd) के पूर्व प्रमोटर कपिल वाधवान की जमानत याचिका पर सीबीआई (CBI) से जवाब मांगा है। वाधवान पर ₹34,926 करोड़ के कथित बैंक धोखाधड़ी मामले में आरोप है, जिसे देश के सबसे बड़े वित्तीय घोटालों में से एक माना जा रहा है।

न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 4 अगस्त को वाधवान की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि उनकी हिरासत के दौरान की गई गतिविधियाँ “निंदा से परे नहीं हैं”। अदालत ने कहा था कि इस तरह के आर्थिक अपराध केवल व्यक्तिगत पीड़ितों के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे वित्तीय तंत्र के खिलाफ अपराध हैं।

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हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, “हिरासत के दौरान आवेदक का आचरण निंदनीय रहा है। मूल्यवान संपत्तियों में हेरफेर और न्यायिक हिरासत के दौरान किए गए लेनदेन गंभीर आरोप हैं, जो यह संकेत देते हैं कि आवेदक अब भी प्रभाव और नियंत्रण बनाए हुए है।”

सीबीआई के अनुसार, वाधवान ने डीएचएफएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक रहते हुए 17 बैंकों के कंसोर्टियम से लगभग ₹34,926 करोड़ की राशि का दुरुपयोग और गबन किया।
एजेंसी ने आरोप लगाया कि उन्होंने 87 शेल कंपनियाँ बनाईं, जो उनके सहयोगियों, कर्मचारियों और रिश्तेदारों के नाम पर थीं, और इन कंपनियों के माध्यम से धन को काल्पनिक “बांद्रा ब्रांच-001” के जरिए 2.6 लाख फर्जी खातों में आवास ऋण के रूप में दर्शाकर निकाल लिया गया।

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हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि वाधवान को जमानत दी गई, तो इससे मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और साक्ष्यों से छेड़छाड़ की आशंका बढ़ जाएगी।
अदालत ने कहा, “जब मुकदमा प्रारंभिक चरण में है, तब ऐसे व्यक्ति को, जो प्रथम दृष्टया गहरे वित्तीय घोटाले का सूत्रधार है, रिहा नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि वाधवान के खिलाफ विभिन्न न्यायालयों में कई जांच और मामले लंबित हैं और अधिकांश गवाह डीएचएफएल के पूर्व कर्मचारी या सहयोगी हैं, जिससे गवाहों को प्रभावित करने का खतरा बना हुआ है।

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वाधवान को 19 जुलाई 2022 को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 3 दिसंबर 2022 को डिफॉल्ट स्टैच्यूटरी जमानत मिल गई थी, लेकिन 24 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने वह जमानत रद्द कर दी।
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी वास्तविक हिरासत अवधि दो वर्ष थी, न कि चार वर्ष जैसा उन्होंने दावा किया था।

अदालत ने अपने आदेश में कहा था, “आरोपों की प्रकृति और गंभीरता, अपराध की गहराई, अभियुक्त की केंद्रीय भूमिका, रिहाई से मुकदमे पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव और भारी मात्रा में धन की हेराफेरी को देखते हुए, इस अदालत को याचिका में कोई मेरिट नहीं दिखाई देती।”

अब सुप्रीम कोर्ट सीबीआई के जवाब के बाद यह तय करेगी कि वाधवान को जमानत दी जाए या नहीं।

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