कर्नाटक हाईकोर्ट ने 16 अक्टूबर, 2025 के एक महत्वपूर्ण फैसले में, एक आरटीआई आवेदन को अस्वीकार करने के खिलाफ दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने यह माना कि पासपोर्ट का विवरण “एक व्यक्ति के लिए निजी” (private to a person) होता है और किसी तीसरे पक्ष को इसका खुलासा “संबंधित व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है।”
जस्टिस सूरज गोविंदराज ने जन सूचना अधिकारी (PIO), प्रथम अपीलीय प्राधिकरण (FAA) और राज्य सूचना आयोग (SIC) के आदेशों को बरकरार रखा, जिन्होंने सामूहिक रूप से एक चेक बाउंस मामले के आरोपी के पासपोर्ट और लुकआउट सर्कुलर (LOC) के विवरण प्रदान करने से इनकार कर दिया था।
कोर्ट ने प्रकाश चिमनलाल शेठ द्वारा दायर याचिका (WP No. 17341 of 2025) को खारिज कर दिया, हालांकि, याचिकाकर्ता को संबंधित आपराधिक अदालत के माध्यम से इन दस्तावेजों को तलब करने के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता प्रदान की।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, प्रकाश चिमनलाल शेठ ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा 138 के तहत एक निजी शिकायत (C.C.No.467/2022) जेएमएफसी, पुत्तूर, दक्षिण कन्नड़ के समक्ष दायर की थी।
निर्णय के अनुसार, उक्त मामले में आरोपी फरार हो गया था, जिसके चलते उसके खिलाफ एक लुकआउट सर्कुलर (LOC) जारी किया गया था। इसके बाद, आरोपी को 1 दिसंबर, 2023 को मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हिरासत में लिया गया और बाद में रिहा कर दिया गया।
इन घटनाओं के बाद, याचिकाकर्ता ने 27 सितंबर, 2024 को सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत एक आवेदन दायर किया। उन्होंने निम्नलिखित जानकारी मांगी:
- आरोपी के पासपोर्ट की एक प्रति।
- वह तारीख जब आरोपी के खिलाफ एलओसी जारी किया गया था।
- उसके खिलाफ जारी एलओसी की एक प्रति।
- पुलिस अधीक्षक, मंगलुरु कार्यालय के पास आरोपी की 1 दिसंबर, 2023 को हिरासत और रिहाई से संबंधित सभी जानकारी और रिकॉर्ड।
सूचना प्राधिकरणों द्वारा अस्वीकृति
याचिकाकर्ता के आवेदन को आरटीआई ढांचे के तीनों स्तरों पर खारिज कर दिया गया था।
- जन सूचना अधिकारी (PIO): प्रतिवादी संख्या 4 (PIO) ने 22 अक्टूबर, 2024 को दो आधारों पर आवेदन को अस्वीकार कर दिया। पहला, यह कि सूचना आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(h) के तहत छूट प्राप्त थी, जो “ऐसी जानकारी जो अपराधियों की जांच या गिरफ्तारी या अभियोजन की प्रक्रिया में बाधा डालेगी” को सुरक्षित करती है। दूसरा, पीआईओ ने कहा कि मांगे गए दस्तावेज़ विशेष शाखा (Special Branch) से संबंधित थे, और अधिनियम की धारा 24(4) के तहत एक सरकारी अधिसूचना के अनुसार आरटीआई अधिनियम जिला पुलिस कार्यालयों की विशेष शाखाओं पर लागू नहीं होता है।
- प्रथम अपीलीय प्राधिकरण (FAA): प्रतिवादी संख्या 3 (FAA) ने 4 दिसंबर, 2024 को पीआईओ के फैसले को “उचित और सही” (proper and correct) बताते हुए बरकरार रखा।
- राज्य सूचना आयोग (SIC): प्रतिवादी संख्या 2 (SIC) ने 19 मार्च, 2025 को याचिकाकर्ता की दूसरी अपील को खारिज कर दिया। आयोग ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय (SLP No.27734/2012) और निजता के कानून (law of privacy) का हवाला देते हुए माना कि मांगी गई जानकारी “व्यक्तिगत जानकारी” (personal information) थी और इसे आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(g) के तहत प्रदान नहीं किया जा सकता।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने तीनों आदेशों को रद्द करने और जानकारी प्रस्तुत करने के लिए पीआईओ को परमादेश (mandamus) जारी करने की मांग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान रिट याचिका दायर की।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
हाईकोर्ट में जस्टिस सूरज गोविंदराज ने अधिकारियों द्वारा अस्वीकृति के लिए दिए गए तर्कों की गहन जांच की।
कोर्ट ने पीआईओ द्वारा धारा 8(1)(h) (जांच में बाधा) और धारा 24(4) (सुरक्षा संगठनों को छूट) पर की गई निर्भरता को नोट किया।
इसके बाद, निर्णय एसआईसी द्वारा अपनाए गए आधार, यानी धारा 8(1)(g) और “निजता के कानून” पर केंद्रित हो गया। कोर्ट ने धारा 8(1)(g) को उद्धृत किया, जो ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण से छूट देती है, “जिससे किसी भी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरा हो…”
जस्टिस गोविंदराज ने माना कि पासपोर्ट विवरण स्वाभाविक रूप से निजी होते हैं और उनका प्रकटीकरण धारा 8(1)(g) द्वारा प्रदान की गई छूट के दायरे में आता है।
कोर्ट ने टिप्पणी की: “पासपोर्ट जैसी जानकारी का खुलासा, मेरी सुविचारित राय में, व्यक्तिगत प्रकृति का होने के कारण, एक व्यक्ति को भारी नुकसान और चोट पहुंचा सकता है।”
निजता और शारीरिक सुरक्षा के बीच सीधे संबंध को स्पष्ट करते हुए, फैसले में कहा गया: “एक पासपोर्ट का विवरण एक व्यक्ति के लिए निजी होता है और यदि उस पासपोर्ट का विवरण याचिकाकर्ता (जिसने धारा 138 के तहत कार्यवाही दायर की है) सहित किसी तीसरे पक्ष को उपलब्ध कराया जाता है, तो यह संबंधित व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है।”
इस निष्कर्ष पर पहुँचते हुए, कोर्ट ने माना कि अधिकारियों द्वारा पारित आदेशों में कोई त्रुटि (infirmity) नहीं थी।
अंत में, रिट याचिका को खारिज करते हुए, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को एक वैकल्पिक उपाय प्रदान किया। कोर्ट ने यह स्वतंत्रता दी कि: “यदि याचिकाकर्ता धारा 138 की कार्यवाही के अभियोजन में उपयोग के लिए उक्त जानकारी मांग रहा है, तो याचिकाकर्ता हमेशा उन दस्तावेजों को तलब करने (summoning of those documents) के लिए उक्त कार्यवाही में एक आवेदन कर सकता है, जिस पर कोर्ट अपने विवेक से विचार कर सकता है।”
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि, “यह स्पष्ट किया जाता है कि इस कोर्ट ने (भविष्य में आपराधिक अदालत में दिए जाने वाले) उस आवेदन की योग्यता (merits) पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।”




