दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त करना एक “अत्यधिक कठोर कदम” है, जो उसके परिवार को अस्थिर कर देता है और जीविका के स्रोत को अचानक और अपमानजनक ढंग से समाप्त कर देता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि बर्खास्तगी को सामान्य या नियमित कदम के रूप में नहीं लिया जा सकता, खासकर तब जब आरोप नैतिक पतन या वित्तीय अनुचितता से संबंधित न हों।
न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने 13 अक्टूबर को दिए आदेश में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक कर्मचारी की बर्खास्तगी को निरस्त करते हुए उसे तुरंत सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा,
“सेवा से बर्खास्तगी एक अत्यधिक कठोर कदम है। यह कर्मचारी के परिवार को अस्थिर कर देती है और उनके जीविका के स्रोत को अचानक और अपमानजनक रूप से समाप्त कर देती है। इसलिए, इसे सामान्य रूप से नहीं लिया जा सकता, विशेषकर तब जब आरोप नैतिक पतन या वित्तीय अनुचितता से संबंधित न हों।”

पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में दंड का निर्णय संतुलित और अनुपातिक होना चाहिए।
कर्मी को तीन आरोपों पर बर्खास्त किया गया था—
- पहली पत्नी के रहते दूसरी महिला से विवाह करना,
- दूसरी शादी से पहले विभाग को सूचित न करना, और
- दूसरी पत्नी की बेटी के लिए चाइल्ड केयर अलाउंस लेना, जबकि उसने औपचारिक रूप से अभी उस बच्ची को गोद नहीं लिया था।
कर्मी की ओर से अधिवक्ता के. के. शर्मा ने दलील दी कि उनकी पहली शादी ग्राम पंचायत के सामने निष्पादन किए गए एक तलाक-पत्र (dissolution deed) से समाप्त हो चुकी थी, इसलिए दूसरी शादी वैध थी।
अदालत ने पाया कि यह तथ्य विभागीय आदेश में दर्ज था और कहीं भी गलत नहीं ठहराया गया। पीठ ने कहा कि इससे कम से कम यह तो स्पष्ट होता है कि कर्मचारी ने सद्भावना में दूसरी शादी की थी, क्योंकि उसे यह विश्वास था कि उसकी पहली शादी वैध रूप से समाप्त हो चुकी है।
पीठ ने कहा,
“ऐसे परिस्थितियों में कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त करना न्यायसंगत नहीं है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस निर्णय में यह तय नहीं कर रही कि पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त हुई थी या नहीं, बल्कि केवल यह देख रही है कि क्या बर्खास्तगी उचित थी।
पीठ ने कहा, “सेवा से बर्खास्त करना इस मामले में न्याय का उपहास होगा।”
अदालत ने यह भी कहा कि कर्मचारी द्वारा चाइल्ड केयर अलाउंस लेना अनुचित नहीं था, क्योंकि संबंधित बच्ची वास्तव में उसकी दूसरी पत्नी की बेटी थी। भले ही औपचारिक गोद लेना बाद में हुआ हो, पर इसमें कोई छल या धोखाधड़ी का उद्देश्य नहीं था।
हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश को निरस्त करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को यह माना जाएगा कि वह निरंतर सेवा में रहा है और उसे वरिष्ठता, वेतन निर्धारण और अन्य सेवा लाभ प्राप्त होंगे।
हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि उसे उस अवधि के लिए वेतन का बकाया भुगतान नहीं मिलेगा, जब वह सेवा से बाहर रहा।