सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राजस्थान सरकार से सख्त सवाल किया कि राज्य के पुलिस थानों के पूछताछ (इंटरोगेशन) कमरों में अभी तक CCTV कैमरे क्यों नहीं लगाए गए, जबकि यही वह “मुख्य जगह” है जहां कैमरे अनिवार्य रूप से होने चाहिए ताकि मानवाधिकारों की रक्षा हो सके।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ राज्य सरकार के हलफनामे पर विचार कर रही थी। अदालत ने कहा, “आपके हलफनामे के अनुसार, पूछताछ कक्ष में कोई कैमरा नहीं है, जबकि यही वह मुख्य जगह है जहां कैमरे होने जरूरी हैं।”
पीठ ने माना कि कैमरे लगाने में लागत आती है, लेकिन स्पष्ट कहा, “यह मानवाधिकार का प्रश्न है।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि राज्य निगरानी (ओवरसाइट) तंत्र को कैसे लागू करने की योजना बना रहा है। पीठ ने कहा, “कैमरों की फीड किसी केंद्रीकृत स्थान या एजेंसी के पास जानी चाहिए जहां निगरानी हो सके।” अदालत ने सुझाव दिया कि किसी स्वतंत्र एजेंसी को इस निगरानी प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे, जिन्हें न्यायालय ने एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है, ने अपनी अद्यतन रिपोर्ट दाखिल की और निगरानी तंत्र को मज़बूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। अदालत ने केंद्र और अन्य राज्यों को भी इस रिपोर्ट पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितंबर को एक मीडिया रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया था, जिसमें बताया गया था कि वर्ष 2025 के पहले आठ महीनों में राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 मौतें हुईं, जिनमें से 7 घटनाएं उदयपुर डिवीजन में हुई थीं।
यह मुद्दा अदालत के सामने नया नहीं है। दिसंबर 2020 में शीर्ष अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया था कि सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ED) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) सहित सभी जांच एजेंसियों के कार्यालयों में CCTV कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाए जाएं।
इसके अलावा, वर्ष 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि हर पुलिस थाने में प्रवेश और निकास द्वार, मुख्य गेट, लॉकअप, गलियारे, लॉबी, रिसेप्शन और लॉकअप के बाहर CCTV कैमरे लगाए जाएं ताकि “कोई भी हिस्सा बिना निगरानी के न रहे।”
26 सितंबर को पारित आदेश में शीर्ष अदालत ने राजस्थान सरकार से प्रत्येक जिले के पुलिस थानों में लगाए गए कैमरों की संख्या और उनकी स्थिति का ब्योरा मांगा था। अदालत ने पूछा था कि क्या कैमरों की कार्यप्रणाली की नियमित ऑडिट होती है, क्या आकस्मिक निरीक्षण की कोई व्यवस्था है, और क्या वीडियो डेटा की छेड़छाड़ रोकने के लिए फॉरेंसिक सत्यापन किया जाता है।
पीठ ने कहा था कि CCTV कैमरों का काम न करना या रिकॉर्डिंग व डेटा का संरक्षण न होना, सुप्रीम कोर्ट के दिसंबर 2020 के आदेश का उल्लंघन है। अदालत ने राज्य को निर्देश दिया कि वह कैमरों के स्पेसिफिकेशन्स जैसे रेज़ॉल्यूशन, नाइट विजन, फील्ड ऑफ व्यू, ऑडियो कैप्चर और टैम्पर डिटेक्शन से जुड़ी जानकारी भी दे।
इस मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी।