सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तेलंगाना के स्पेशल इंटेलिजेंस ब्यूरो (SIB) के पूर्व प्रमुख टी. प्रभाकर राव को निर्देश दिया कि वे फ़ोन टैपिंग मामले की जांच के सिलसिले में अपना iCloud अकाउंट पासवर्ड राज्य पुलिस को फॉरेंसिक विशेषज्ञों की मौजूदगी में सौंपें।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने राव को जांच में सहयोग करने और जांच अधिकारी के सामने पेश होने का निर्देश दिया। साथ ही, उन्हें दी गई अंतरिम सुरक्षा को भी बढ़ा दिया।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि राव के “सहयोग न करने” के कारण जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि अदालत से अंतरिम सुरक्षा मिलने के बाद राव ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को फॉर्मेट कर महत्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट कर दिए।

उन्होंने कहा, “ये केवल राजनेताओं के ही नहीं बल्कि कई महत्वपूर्ण लोगों के फ़ोन इंटरसेप्ट कर रहे थे। एंटिसिपेटरी बेल अर्जी दाखिल करने के बाद इन्होंने डिवाइस को फॉर्मेट कर दिया। अब वो बिल्कुल नई डिवाइस जैसी है। यह मेरा अनुमान नहीं है, सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी ने इसकी पुष्टि की है।”
मेहता ने यह भी दावा किया कि राव ने 15 हार्ड डिस्क खरीदी थीं और संभवतः उनके पास बैकअप मौजूद है, लेकिन वे इस बात से इनकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “वे इसलिए सहयोग नहीं कर रहे क्योंकि उन्हें इस अदालत की अंतरिम सुरक्षा का छाता मिला हुआ है।”
राव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डी.एस. नायडू ने आरोपों को कड़ी तरह से खारिज करते हुए कहा कि राव जांच में पूरा सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने दलील दी कि यह जांच राजनीतिक रूप से प्रेरित है और आरोप लगाया कि “बाहरी लोग, राजनेता, सांसद और विधायक” को भी पूछताछ के दौरान आने की अनुमति दी गई।
इस पर न्यायमूर्ति नागरत्ना ने नाराज़गी जताते हुए टिप्पणी की, “यह ‘तमाशा’ नहीं हो सकता। सांसद और विधायक आकर पूछताछ कैसे कर सकते हैं? वे न तो दर्शक हो सकते हैं और न ही जांच का हिस्सा।”
मेहता ने इस आरोप से इनकार किया। मामला अब 18 नवंबर को फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
राव ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 29 मई को उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दी थी और पासपोर्ट मिलने के तीन दिन के भीतर भारत लौटने का निर्देश दिया था।
इससे पहले, 22 मई को हैदराबाद की एक अदालत ने उनके खिलाफ उद्घोषणा आदेश (proclamation order) जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि अगर वे 20 जून तक पेश नहीं होते तो उन्हें “घोषित अपराधी” (proclaimed offender) घोषित किया जा सकता है। ऐसे मामलों में अदालत आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का आदेश भी दे सकती है।
यह मामला कथित रूप से पिछले बीआरएस शासनकाल के दौरान SIB के संसाधनों के दुरुपयोग से जुड़ा है। पुलिस के अनुसार, कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने नागरिकों की गुप्त निगरानी कर राजनीतिक लाभ के लिए उनका डेटा अनधिकृत रूप से एकत्र किया। साथ ही, अपराध के साक्ष्य मिटाने के लिए रिकॉर्ड नष्ट करने की साजिश रची गई।
मार्च 2024 में SIB के एक निलंबित डीएसपी समेत चार पुलिस अधिकारियों को विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों से इंटेलिजेंस जानकारी मिटाने और अवैध फ़ोन टैपिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्हें ज़मानत मिल गई।