छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक निचली अदालत के बरी करने के फैसले को पलटते हुए, 2013 के हत्या, हत्या के प्रयास और डकैती के मामले में दो लोगों को दोषी ठहराया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायाधीश बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को “विकृत निष्कर्ष” (perverse finding) करार दिया और कहा कि अदालत ने घायल चश्मदीद गवाह की विश्वसनीय और महत्वपूर्ण गवाही को गलत तरीके से नजरअंदाज किया था।
हाईकोर्ट ने विक्की उर्फ मनोहर सिंह और विजय चौधरी को दशरथ लाल खंडेलवाल की हत्या के लिए आजीवन कारावास और उनकी पत्नी श्रीमती विमला देवी खंडेलवाल की हत्या के प्रयास के लिए दस साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। यह फैसला बिलासपुर के तीसरे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के 16 मई, 2016 के उस फैसले को रद्द करता है, जिसमें दोनों आरोपियों को बरी कर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
मामला 22 नवंबर, 2013 का है, जब दो हमलावर बुजुर्ग दंपति, दशरथ लाल खंडेलवाल और विमला देवी खंडेलवाल के घर में जबरन घुस गए थे। पीड़ित के बेटे अनिल खंडेलवाल द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी (FIR) के अनुसार, आरोपियों ने चाकू दिखाकर पैसे की मांग की और विरोध करने पर दंपति पर हमला कर दिया।

हमले में दशरथ लाल खंडेलवाल को कई गंभीर चोटें आईं और अस्पताल पहुंचने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। विमला देवी के पेट में भी चाकू से गहरा घाव लगा था। हमलावर मृतक की घड़ी और मोबाइल फोन लूटकर फरार हो गए।
जांच के बाद विक्की उर्फ मनोहर सिंह और विजय चौधरी को गिरफ्तार किया गया। हालांकि, निचली अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 455, 394, 307, 302 और 201 के तहत सभी आरोपों से बरी कर दिया था, जिसके खिलाफ पीड़ित के बेटे और छत्तीसगढ़ राज्य ने हाईकोर्ट में अपील दायर की।
हाईकोर्ट के समक्ष तर्क
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने महत्वपूर्ण सबूतों को नजरअंदाज करके एक गंभीर त्रुटि की है। उन्होंने कहा कि घायल चश्मदीद गवाह श्रीमती विमला देवी (PW-3), जिन्होंने आरोपियों की पहचान की थी, की गवाही को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया। इसके अलावा, अदालत ने शिनाख्त परेड (TIP), आरोपियों से खून लगे चाकुओं की बरामदगी, और फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (FSL) की रिपोर्ट जैसे पुष्टि करने वाले सबूतों की अनदेखी की, जिसमें बरामद वस्तुओं पर इंसानी खून की पुष्टि हुई थी।
बचाव पक्ष के वकीलों ने बरी किए जाने के फैसले का बचाव करते हुए तर्क दिया कि शिनाख्त परेड में चार महीने की देरी ने उसकी विश्वसनीयता को कम कर दिया। उन्होंने विमला देवी के शुरुआती पुलिस बयान की ओर इशारा किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमलावरों के चेहरे दुपट्टे से ढके हुए थे। उनका यह कहना कि हाथापाई के दौरान दुपट्टे गिर गए, जिससे वह उन्हें पहचान सकीं, एक विरोधाभास के रूप में प्रस्तुत किया गया।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर निचली अदालत के इस निष्कर्ष की पुष्टि की कि दशरथ लाल खंडेलवाल की मृत्यु एक हत्या थी। अपील अदालत के लिए मुख्य मुद्दा यह था कि क्या घायल चश्मदीद की गवाही के बावजूद बरी करने का फैसला उचित था।
पीठ ने तोता सिंह बनाम पंजाब राज्य जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि एक अपीलीय अदालत को बरी करने के फैसले में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि निचली अदालत का दृष्टिकोण “किसी स्पष्ट अवैधता से दूषित” न हो या उसका निष्कर्ष “विकृत” न हो।
घायल चश्मदीद की गवाही विश्वसनीय पाई गई अदालत ने श्रीमती विमला देवी (PW-3) की गवाही को महत्वपूर्ण माना। अदालत ने कहा कि मामूली विरोधाभासों के बावजूद, जो “सदमे और समय बीतने” के कारण हो सकते हैं, उनकी गवाही “स्पष्ट रूप से घटनास्थल पर अभियुक्तों की उपस्थिति, उनके जबरन घुसने और उनके पति को चाकू मारने की घटना को स्थापित करती है।”
पुष्टि करने वाले अन्य सबूत हाईकोर्ट ने पाया कि शिनाख्त परेड (TIP) कानून के अनुसार की गई थी और इससे पहचान की पुष्टि हुई। अदालत ने रेशमा बानो (PW-12) की गवाही पर भी भरोसा किया, जिसके सामने आरोपी विक्की सिंह ने हत्या करने की बात कबूल की थी। इसके अलावा, आरोपियों के बयानों के आधार पर खून से सने कपड़ों और चाकू की बरामदगी को महत्वपूर्ण सबूत माना गया, जिसकी पुष्टि FSL रिपोर्ट से भी हुई।
निचली अदालत का फैसला “विकृत” करार दिया गया अपने अंतिम विश्लेषण में, हाईकोर्ट ने माना कि निचली अदालत ने गंभीर रूप से गलती की थी। फैसले में कहा गया है: “यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अभियुक्तों/प्रतिवादियों के खिलाफ ठोस कानूनी सबूतों के अस्तित्व के बावजूद, निचली अदालत ने खेदपूर्वक, अपने निष्कर्षों को केवल अनुमानों पर आधारित किया है। विशेष रूप से, निचली अदालत ने घायल गवाह, श्रीमती विमला देवी (PW-3) की गवाही पर अविश्वास किया है, जिनका साक्ष्य रिकॉर्ड पर महत्वपूर्ण और विश्वसनीय है। निचली अदालत का ऐसा दृष्टिकोण एक विकृत निष्कर्ष है, क्योंकि यह बिना किसी उचित आधार के विश्वसनीय सबूतों की अवहेलना करता है।”
अंतिम फैसला
बरी करने के फैसले में हस्तक्षेप करने के लिए ठोस कारण पाते हुए, हाईकोर्ट ने दोनों अपीलों को स्वीकार कर लिया। निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया गया और आरोपियों को दोषी ठहराया गया।
- आईपीसी की धारा 302/34 (हत्या) के तहत: विक्की उर्फ मनोहर सिंह और विजय चौधरी को आजीवन कारावास और प्रत्येक पर 1,000 रुपये का जुर्माना।
- आईपीसी की धारा 307/34 (हत्या का प्रयास) के तहत: उन्हें 10 साल के सश्रम कारावास और प्रत्येक पर 200 रुपये का जुर्माना।
दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। दोषियों को अपनी सजा काटने के लिए एक महीने के भीतर निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है।