सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान रॉयल्स की कंपनी को ₹82.80 लाख का भुगतान करने के एनसीडीआरसी के आदेश पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को आईपीएल टीम राजस्थान रॉयल्स की पैरेंट कंपनी रॉयल मल्टीस्पोर्ट प्रा. लि. को ₹82.80 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। यह दावा 2012 आईपीएल सीजन के दौरान क्रिकेटर एस. श्रीसंत की घुटने की चोट से जुड़ा था।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने बीमा कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अंतरिम आदेश पारित किया। सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की, “वह (श्रीसंत) एक दिन भी आईपीएल 2012 में नहीं खेले।”

पीठ ने आगे कहा, “आगे के आदेश तक विवादित आदेश का प्रभाव और संचालन स्थगित रहेगा।” इसके बाद मामले को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया।

मार्च 2012 में रॉयल मल्टीस्पोर्ट प्रा. लि. ने राजस्थान रॉयल्स टीम के खिलाड़ियों से अनुबंध किया और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस से ₹8.70 करोड़ की राशि के लिए ‘स्पेशल कंटिजेंसी इंश्योरेंस फॉर प्लेयर लॉस ऑफ फीस कवर’ पॉलिसी ली। इस पॉलिसी के तहत खिलाड़ियों को चोट लगने के कारण मैचों में न खेलने की स्थिति में कंपनी को उनके शुल्क, पारिश्रमिक और अन्य भुगतान की क्षति की भरपाई दी जानी थी। पॉलिसी की अवधि 28 मार्च 2012 से 28 मई 2012 तक थी।

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28 मार्च 2012 को श्रीसंत जयपुर में अभ्यास मैच के दौरान घुटने में चोट का शिकार हो गए। बाद में चिकित्सा जांच में पाया गया कि वह उस पूरे सीजन में खेलने के लिए अयोग्य हैं। कंपनी ने सितंबर 2012 में ₹82.80 लाख के नुकसान की भरपाई के लिए दावा दायर किया और सभी चिकित्सीय दस्तावेज बीमा कंपनी को सौंपे। बीमा कंपनी द्वारा नियुक्त सर्वेयर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि चोट “अचानक, अप्रत्याशित और अनपेक्षित घटना” के कारण हुई है और यह पॉलिसी की शर्तों के अंतर्गत आती है।

बीमा कंपनी ने दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि श्रीसंत को पहले से पैर की उंगली में चोट थी, जिसे कथित तौर पर रॉयल मल्टीस्पोर्ट ने उजागर नहीं किया था। एनसीडीआरसी ने इस आधार को अस्वीकार कर दिया। आयोग ने पाया कि एक्स-रे, एमआरआई रिपोर्ट और चिकित्सकों की विशेषज्ञ राय से यह स्पष्ट है कि घुटने की चोट पॉलिसी अवधि के दौरान हुई थी।

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आयोग ने कहा,
“जब घुटने की चोट का तथ्य एक्स-रे, एमआरआई रिपोर्ट और डॉक्टरों की विशेषज्ञ राय जैसे साक्ष्यों से स्थापित है, तो पूर्ववर्ती पैर की उंगली की चोट के आधार पर दावा खारिज करना, जिसका बीमा अवधि के दौरान घटित होना या दोबारा होना सिद्ध नहीं हुआ है, सेवा में कमी के समान है।”

एनसीडीआरसी ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को ₹82.80 लाख का भुगतान रॉयल मल्टीस्पोर्ट प्रा. लि. को करने का निर्देश दिया था।

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बीमा कंपनी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने अब एनसीडीआरसी के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है और मामले की अगली सुनवाई में बीमा कंपनी की दलीलों पर विचार किया जाएगा।

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