बॉम्बे हाईकोर्ट को एक 16 वर्षीय किशोरी ने सूचित किया है कि वह अपनी 27 सप्ताह की गर्भावस्था को पूरा समय तक जारी रखेगी। यह निर्णय एक चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के बाद आया, जिसमें भ्रूण में कोई विकृति या गर्भावस्था से उसके स्वास्थ्य को गंभीर खतरा नहीं पाया गया।
किशोरी ने अपने पिता के माध्यम से अदालत में याचिका दायर कर गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति मांगी थी। यह गर्भावस्था एक रिश्ते का परिणाम थी। यह याचिका न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदीश पाटिल की पीठ के समक्ष आई।
राज्य संचालित जे.जे. अस्पताल के एक मेडिकल बोर्ड ने किशोरी की जांच कर रिपोर्ट अदालत में सौंपी। रिपोर्ट में कहा गया कि भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं है और गर्भावस्था जारी रखने से किशोरी के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को कोई गंभीर जोखिम नहीं है। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि अविवाहित होने के कारण गर्भावस्था जारी रखने से उसे “सामाजिक पीड़ा” हो सकती है।

इस रिपोर्ट के आधार पर अदालत के पास मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत गर्भपात की अनुमति देने या न देने का निर्णय लेने का विकल्प था।
10 अक्टूबर को पीठ ने किशोरी से बातचीत की और उसे मेडिकल रिपोर्ट की जानकारी दी। बातचीत के बाद किशोरी ने अदालत को बताया कि वह पूर्ण अवधि तक गर्भावस्था जारी रखना चाहती है। उसने अदालत से अनुरोध किया कि उसे डिलीवरी तक किसी शेल्टर होम में भेजा जाए।
अदालत ने उसकी मांग स्वीकार करते हुए निर्देश दिया कि किशोरी को मुंबई के उपनगरीय क्षेत्र में स्थित एक शेल्टर होम में रखा जाए। साथ ही, संबंधित पुलिस थाने की एक महिला कांस्टेबल को सप्ताह में एक बार उसे जे.जे. अस्पताल ले जाकर चिकित्सकीय जांच करवाने का आदेश दिया गया।