दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को मेटा प्लेटफॉर्म्स और गूगल एलएलसी से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या वे उन URL को हटाने के लिए तैयार हैं जिनमें गायक कुमार सानू के ख़िलाफ़ मॉर्फ्ड वीडियो और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया है।
न्यायमूर्ति मनीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने यह निर्देश उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया जिसमें कुमार सानू ने अपने व्यक्तित्व और प्रचार अधिकारों (Personality and Publicity Rights) की सुरक्षा की मांग की है। इसमें उनके नाम, आवाज़, गायकी की शैली, तकनीक और उनकी छवि जैसी विशेषताओं की सुरक्षा शामिल है।
“प्रतिवादी संख्या 7 (मेटा प्लेटफॉर्म्स) और 20 (गूगल एलएलसी) के वकीलों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे यह निर्देश लें कि याचिकाकर्ता (सानू) द्वारा दिए गए तथ्यों के अनुसार चूंकि विवादित URL में मॉर्फ्ड वीडियो और अश्लील भाषा शामिल है, तो क्या वे इन वीडियोज़ को हटाएंगे… और सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के अनुसार शिकायत निवारण अधिकारी द्वारा इन्हें क्यों न हटाया जाए,” अदालत ने कहा।

अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 15 अक्टूबर तय की है। याचिकाकर्ता के वकील ने आपत्तिजनक URL की सूची पेश की और उन्हें जांचने के लिए समय मांगा।
मेटा (फेसबुक और इंस्टाग्राम की मूल कंपनी) के वकील ने अदालत को बताया कि वे URL की समीक्षा करेंगे और बताएंगे कि किन-किन को हटाया जा सकता है।
उन्होंने आईटी नियमों के तहत “अश्लीलता” तय करने में आने वाली मुश्किलें भी बताईं।
“मुश्किल यह है कि अगर सामग्री में अश्लीलता हो। आईटी नियमों के तहत ‘मानहानि’ शब्द को खास तौर पर हटा दिया गया है। अब एक मध्यस्थ के रूप में मैं तय नहीं कर सकता कि क्या अश्लील है और क्या नहीं। यह हिस्सा अदालत को तय करना होता है,” उन्होंने कहा।
गायक सानू ने अपने वकीलों शिखा सचदेवा और सना रईस खान के माध्यम से दायर याचिका में अपने नाम, आवाज़, गायकी की शैली, तरीक़ों, तस्वीरों, हस्ताक्षर, व्यक्तित्व और छवि के अवैध व अनधिकृत उपयोग पर रोक लगाने की मांग की है।
उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रतिवादी उनकी नैतिक अधिकारों (Moral Rights) का उल्लंघन कर रहे हैं, जो उन्हें कॉपीराइट कानून के तहत उनके प्रदर्शनों में प्राप्त हैं।
याचिका में कहा गया है कि कुमार सानू को कई GIF, ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग्स तथा एआई (AI) के माध्यम से उनकी आवाज़, गायकी की शैली और चेहरे को मॉर्फ कर बनाए गए कंटेंट से नुकसान पहुंच रहा है। इनमें से कई कंटेंट से प्लेटफॉर्म्स को व्यावसायिक लाभ भी हो रहा है।
“ऐसी ऑडियोज़/वीडियोज़ और मर्चेंडाइज़ से प्रतिवादियों को राजस्व प्राप्त होता है, क्योंकि इन्हें फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड और स्ट्रीम किया जाता है, जहाँ प्रति व्यू या क्लिक के आधार पर आय होती है,” याचिका में कहा गया है।
“ऐसे कार्य झूठे अनुमोदन (False Endorsements) और पासिंग ऑफ़ के प्रयास हैं, जिन्हें अदालत के आदेश द्वारा रोका जाना आवश्यक है।”