दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि उसके पास पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की उस याचिका को सुनने का अधिकार है जिसमें यूएपीए ट्रिब्यूनल द्वारा संगठन पर लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध को बरकरार रखने के आदेश को चुनौती दी गई है। अदालत ने याचिका की ग्राह्यता (maintainability) पर फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा,
“तदनुसार, हम यह घोषित करते हैं कि इस न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करने का अधिकार है। नोटिस जारी करें। 20/1 को सूचीबद्ध करें।”

पीठ ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई की तारीख 20 जनवरी 2026 तय की है। फैसले की विस्तृत प्रति अभी आना बाकी है।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उससे संबद्ध संगठनों पर केंद्र सरकार ने सितंबर 2022 में प्रतिबंध लगाया था और उन्हें यूएपीए के तहत “गैरकानूनी संगठन” घोषित किया था। सरकार ने उन पर इस्लामी कट्टरपंथ और आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगाए थे।
21 मार्च 2023 को पूर्व दिल्ली हाईकोर्ट न्यायाधीश दिनेश कुमार शर्मा की अध्यक्षता वाले यूएपीए ट्रिब्यूनल ने इस प्रतिबंध को बरकरार रखा। इसके खिलाफ पीएफआई ने पहले सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संगठन को पहले हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी चाहिए। इसके बाद पीएफआई ने अनुच्छेद 226 के तहत ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने दलील दी कि याचिका ग्राह्य नहीं है क्योंकि यूएपीए ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता दिल्ली हाईकोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश द्वारा की गई थी। उनके अनुसार, अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट को ऐसे ट्रिब्यूनल को निर्देश देने का अधिकार नहीं है और संगठन के पास एकमात्र उपाय सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का था।
गौरतलब है कि अनुच्छेद 226 हाईकोर्ट को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन और “किसी अन्य उद्देश्य” के लिए रिट जारी करने की शक्ति देता है।
पीएफआई की ओर से अधिवक्ता सत्यकाम ने कहा कि उनकी याचिका अनुच्छेद 226 के तहत सुनवाई योग्य है, भले ही ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता हाईकोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश ने की हो। उन्होंने अदालत के अक्टूबर 2024 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में यूएपीए ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक पुनरीक्षण (judicial review) संभव है।
इसी आधार पर, वर्तमान पीठ ने माना कि अदालत को इस मामले पर सुनवाई का अधिकार है।