सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देशभर की जेलों में बंद करीब 4.5 लाख अंडरट्रायल कैदियों को मतदान का अधिकार देने की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलीलों पर संज्ञान लिया। भूषण ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत लगाया गया blanket ban (पूर्ण प्रतिबंध) संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक मानकों का उल्लंघन करता है।
यह याचिका पंजाब के पटियाला निवासी सुनीता शर्मा ने दायर की है। इसमें कानून और न्याय मंत्रालय तथा भारतीय चुनाव आयोग को पक्षकार बनाया गया है।

याचिका में कहा गया है कि जिन अंडरट्रायल कैदियों को न तो किसी चुनावी अपराध में दोषी ठहराया गया है और न ही भ्रष्टाचार के आरोप में सजा हुई है, उन्हें लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसमें अदालत से हस्तक्षेप कर ऐसे कैदियों के मतदान अधिकार को सुनिश्चित करने की मांग की गई है।
धारा 62(5) के तहत किसी भी व्यक्ति को, जो जेल में बंद है — चाहे वह सजा काट रहा हो या विचाराधीन हो — मतदान करने से प्रतिबंधित किया गया है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह प्रावधान अंडरट्रायल कैदियों को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, जबकि उन्हें दोषी सिद्ध नहीं किया गया है।
शीर्ष अदालत ने अब इस याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।