बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया है जिस पर एक श्रवण और वाणी-बाधित महिला के साथ दुष्कर्म का आरोप है। अदालत ने पाया कि पुलिस ने गिरफ्तारी के दौरान कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया। साथ ही, अदालत ने अपराध की गंभीरता को देखते हुए जांच एजेंसी को उसे दोबारा गिरफ्तार करने की अनुमति भी दी है।
मंगलवार को न्यायमूर्ति सरंग कोतवाल और न्यायमूर्ति श्याम चंदक की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया। पीठ ने स्पष्ट किया कि आरोपी को जमानत नहीं दी जा रही है, बल्कि उसकी रिहाई केवल इसलिए की जा रही है क्योंकि उसकी प्रारंभिक हिरासत अवैध थी।
मामले के दस्तावेजों की जांच के बाद अदालत ने पाया कि आरोपी को औपचारिक गिरफ्तारी से पहले पूरे एक दिन तक पुलिस स्टेशन में रखा गया था। उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष 24 घंटे की कानूनी अवधि से अधिक समय बाद पेश किया गया।
अदालत ने कहा,
“रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि आरोपी को 24 घंटे की निर्धारित अवधि से अधिक समय के बाद अदालत में पेश किया गया, जो कानून के प्रावधानों का उल्लंघन है। इसलिए यह माना जाएगा कि उसकी हिरासत अवैध थी और परिणामस्वरूप उसे रिहा किया जाना आवश्यक है।”
पीठ ने जांच एजेंसी की लापरवाही की आलोचना करते हुए कहा कि अपराध गंभीर है और पुलिस की गलती की वजह से पीड़िता को नुकसान नहीं होना चाहिए।
अदालत ने कहा,
“चूंकि अपराध काफी गंभीर है, इसलिए यह उचित नहीं होगा कि जांच एजेंसी की गलती का खामियाजा पीड़िता को भुगतना पड़े। इसलिए संतुलन बनाने के लिए जांच एजेंसी को आरोपी को पुनः गिरफ्तार करने की स्वतंत्रता दी जाती है।”
इस दिशा-निर्देश के साथ अदालत ने आरोपी की जेल से रिहाई का आदेश दिया।
आरोपी की पत्नी ने हाईकोर्ट का रुख करते हुए तर्क दिया था कि गिरफ्तारी अवैध है क्योंकि पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेने के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया।
याचिका के अनुसार, यह मामला इस वर्ष अप्रैल में मुंबई के साकीनाका पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। आरोपी एक रिहायशी इमारत में सुपरवाइज़र के रूप में काम करता था। आरोप है कि उसने इमारत की हाउसकीपिंग कर्मचारी, जो श्रवण और वाणी-बाधित है, से उस समय दुष्कर्म किया जब वह पार्किंग क्षेत्र की सफाई करने गई थी। पीड़िता ने पुलिस को बताया कि आरोपी ने उसे रोका और उसके साथ जबरदस्ती की।




