सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड सरकार को पश्चिम सिंहभूम ज़िले के पारिस्थितिक रूप से समृद्ध सरंडा वन क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने पर अंतिम निर्णय लेने के लिए एक सप्ताह का समय दिया। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर राज्य सरकार कार्रवाई नहीं करती है तो वह स्वयं रिट ऑफ़ मैंडमस (writ of mandamus) जारी कर सकती है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट कहा कि अदालत “किसी को जेल भेजने में दिलचस्पी नहीं रखती,” लेकिन राज्य को उसके पुराने लंबित निर्देशों का पालन करना ही होगा। मामला अब 15 अक्टूबर को आगे की सुनवाई के लिए तय किया गया है।
यह मामला सरंडा और ससंगदाबुरू वन क्षेत्रों को क्रमशः वन्यजीव अभयारण्य और संरक्षण रिज़र्व के रूप में अधिसूचित करने के प्रस्ताव से जुड़ा है। मूल प्रस्ताव में 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने की बात थी। बाद में झारखंड सरकार ने प्रस्तावित क्षेत्र बढ़ाकर 57,519.41 हेक्टेयर कर दिया और ससंगदाबुरू संरक्षण रिज़र्व के लिए 13,603.806 हेक्टेयर अलग से चिन्हित किया।

इसके बावजूद अधिसूचना की प्रक्रिया वर्षों से अटकी हुई है। 29 अप्रैल 2025 को शीर्ष अदालत ने झारखंड सरकार को इस देरी पर फटकार लगाई थी। मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) ने नवंबर 2024 में प्रस्ताव भेजा था, लेकिन मार्च 2025 में इसे “आगे की टिप्पणियों” के लिए लौटा दिया गया, जिससे पूरी प्रक्रिया ठप पड़ गई। अदालत ने उस समय अवमानना की चेतावनी भी दी थी और वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया था।
17 सितंबर को पीठ ने राज्य सरकार की “पूरी तरह अनुचित कार्यवाही” और “टालमटोल की रणनीति” की कड़ी आलोचना की थी और मुख्य सचिव अविनाश कुमार को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया था। बुधवार को उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के माध्यम से प्रस्तुतियां दीं और अंतिम निर्णय के लिए एक सप्ताह का समय मांगा।
इस पर सीजेआई गवई ने कहा, “या तो आप यह करें या हम मैंडमस जारी कर देंगे।” अदालत ने राज्य को अंतिम मौका देते हुए मूल 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को सात दिनों के भीतर वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का निर्देश दिया।
अमाइकस क्यूरी (amicus curiae) के रूप में सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने कहा कि राज्य ने पहले बड़े क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने का वादा किया था, लेकिन पीठ ने कहा कि कम से कम मूल क्षेत्र के संबंध में कोई भ्रम नहीं है और वहीं से प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने सेल (Steel Authority of India Ltd – SAIL) को राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए अपने मौजूदा लौह अयस्क खानों से खनन जारी रखने की अनुमति दी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कंपनी चंद्रयान जैसी परियोजनाओं सहित राष्ट्रीय महत्व के प्रोजेक्ट्स को इस क्षेत्र की खानों से स्टील की आपूर्ति करती है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि खनन केवल पहले से चालू खानों या पूर्व में स्वीकृत पट्टों में ही होगा। कोई नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जाएगा।
अदालत ने झारखंड सरकार की उस कार्रवाई पर नाराज़गी जताई, जिसमें उसने 13 मई को एक नई समिति बनाकर मसले पर विचार शुरू किया, जबकि उसे पहले ही अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए जा चुके थे। एक पहले की सुनवाई में सीजेआई गवई ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा था कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें बताया कि “झारखंड में बहुत अच्छी जेलें हैं,” जिससे अदालत की बढ़ती अधीरता झलकती थी।
पीठ ने पहले भी कहा था कि सरकार “फाइलों को एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी तक भेजकर बेवजह देरी कर रही है।” वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव अबू बकर सिद्दीकी ने व्यक्तिगत रूप से पेश होकर बिना शर्त माफी मांगी थी, जिसे अदालत ने स्वीकार किया।
अब मामला 15 अक्टूबर को फिर से सुना जाएगा। अगर झारखंड सरकार निर्धारित समय में अधिसूचना जारी नहीं करती है तो सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह स्वयं रिट ऑफ़ मैंडमस जारी कर हस्तक्षेप कर सकती है।