आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि किसी आरोपी को गिरफ्तारी का आधार नहीं बताया जाता है, तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। ऐसी स्थिति में, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS एक्ट) की धारा 37 के तहत जमानत के लिए लगाई गई कठोर शर्तें लागू नहीं की जा सकतीं।
यह आदेश माननीय डॉ. जस्टिस वाई. लक्ष्मण राव ने चेव्वाकुला चिन्नम्माळु द्वारा दायर एक आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया, जो अनाकापल्ली जिले के रोलुगुंटा पुलिस स्टेशन में दर्ज एक मामले में आरोपी थी। याचिकाकर्ता पर NDPS एक्ट की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।
मामले की पृष्ठभूमि
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 21 अप्रैल, 2025 को सुबह लगभग 10:00 बजे, रोलुगुंटा पुलिस ने कंचुगुम्मला जंक्शन के पास वाहनों की जांच के दौरान दो मोटरसाइकिलों पर सवार चार संदिग्ध व्यक्तियों को भागने की कोशिश करते हुए पकड़ा। जांच करने पर, उनके पास से सफेद पीवीसी बैग में रखा कुल 26 किलोग्राम गांजा बरामद हुआ, जिसकी कीमत 1,30,000 रुपये बताई गई।

आरोप था कि याचिकाकर्ता (आरोपी संख्या 1) ने यह गांजा आरोपी संख्या 2 से खरीदा था और इसे आरोपी संख्या 3 और 4 की मदद से कहीं और ले जा रही थी। पुलिस ने गांजा, दो बाइक और चार मोबाइल फोन जब्त कर सभी को हिरासत में ले लिया था। याचिकाकर्ता पिछले 156 दिनों से न्यायिक हिरासत में थी और यह उसकी जमानत के लिए दूसरी याचिका थी।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील श्री अर्राबोलु साई नवीन ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल निर्दोष है और उसे झूठा फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है और वह अपने परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य है। सबसे महत्वपूर्ण दलील यह दी गई कि याचिकाकर्ता को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 47 के तहत गिरफ्तारी का आधार नहीं बताया गया, जो एक अनिवार्य प्रक्रिया है।
वहीं, सहायक लोक अभियोजक सुश्री पी. अखिला नायडू ने जमानत का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि जांच अभी एक महत्वपूर्ण चरण में है और याचिकाकर्ता को रिहा करने से जांच प्रभावित हो सकती है। अभियोजन पक्ष ने यह भी आशंका जताई कि याचिकाकर्ता गवाहों को डरा-धमका सकती है या फरार हो सकती है।
अदालत का विश्लेषण और निर्णय
दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद, जस्टिस वाई. लक्ष्मण राव ने इस मामले में विचार के लिए मुख्य प्रश्न यह तय किया: “क्या याचिकाकर्ता जमानत की हकदार है?”
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता को उसकी गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित न करना संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत दिए गए मौलिक अधिकार का “स्पष्ट उल्लंघन” है। अदालत ने कहा, “संविधान का अनुच्छेद 22(1) यह अनिवार्य बनाता है कि जैसे ही किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, उसे गिरफ्तारी के कारणों के बारे में लिखित रूप में सूचित किया जाना चाहिए, ताकि वह अपना बचाव तैयार कर सके और जमानत मांग सके।”
अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया, “जब इस तरह के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है, तो एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 की कठोरता को लागू नहीं किया जा सकता।”
इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ, हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया और याचिकाकर्ता को कुछ कड़ी शर्तों के साथ जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। शर्तों में 10,000 रुपये का मुचलका भरना, हर शनिवार को पुलिस स्टेशन में हाजिरी देना, बिना अनुमति के राज्य नहीं छोड़ना और जांच में पूरा सहयोग करना शामिल है।