झारखंड हाईकोर्ट में 25 सितंबर, 2025 को एक असाधारण घटनाक्रम देखने को मिला, जब एक न्यायाधीश ने एक वकील के आचरण का मामला जांच के लिए झारखंड स्टेट बार काउंसिल को भेज दिया। आरोप है कि अदालत का प्रतिकूल आदेश सुनने के बाद वकील ने “ऊंची आवाज में बहस” की और “अदालत को धमकी” दी। एकल-न्यायाधीश पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी ने वकील के इस बर्ताव को “निंदनीय” और “पूरी न्यायपालिका पर हमला” बताया।
यह घटना एक जमीन हड़पने के मामले में आरोपी मुवक्किलों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने के तुरंत बाद हुई। अदालत ने शुरू में इस मामले को “आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए उपयुक्त” माना था, लेकिन बार के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा नरमी बरतने के अनुरोध के बाद अदालत ने यह कार्यवाही नहीं की।
अदालत कक्ष की घटना
अदालत के फैसले में उस घटना का विस्तृत ब्योरा दिया गया है जो जमानत खारिज होने के बाद हुई। आदेश के अनुसार, “याचिकाकर्ताओं के वकील… ने अदालत में मौजूद अन्य वकीलों के सामने ऊंची आवाज में बहस शुरू कर दी और सभी ने यह देखा।”

आदेश में एक विशिष्ट धमकी का भी उल्लेख है, जिसमें कहा गया है, “वकील ने… अदालत को आदेश पारित करने की धमकी दी और कहा कि वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे।”
न्यायमूर्ति द्विवेदी ने इस व्यवहार को न्याय प्रशासन में बाधा डालने का एक प्रयास बताया। उन्होंने टिप्पणी की, “अगर उन्हें बिना किसी कार्रवाई के जाने दिया जाता है, तो समाज में यह संदेश जाएगा कि कोई भी न्यायाधीश को इस तरह की गुंडागर्दी करके फैसला सुनाने से रोक सकता है।” अदालत ने जोर देकर कहा कि इस तरह का आचरण “अदालत को ही बदनाम करने के बराबर है” और यह “पूरी न्यायपालिका पर हमला है।”
बार के हस्तक्षेप के बाद अवमानना कार्यवाही रुकी
अदालत ने शुरू में अपने अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हुए आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का मन बनाया था। हालांकि, फैसले में यह उल्लेख है कि “अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष और सचिव सहित बार के कई सदस्यों ने अदालत से अनुरोध किया कि इस वकील को एक मौका दिया जाए और उसके खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला शुरू न किया जाए और इस पर नरम रुख अपनाया जाए।”
इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए, अदालत ने अवमानना की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया। आदेश में कहा गया है, “इस मामले को देखते हुए और बार के सदस्यों के अनुरोध पर, यह अदालत उक्त वकील के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही नहीं कर रही है।”
पेशेवर कदाचार के लिए मामला भेजा गया
अवमानना कार्यवाही को छोड़ने के बावजूद, अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि वकील के आचरण की पेशेवर जांच की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति द्विवेदी ने निर्देश दिया, “हालांकि, उनके आचरण पर झारखंड स्टेट बार काउंसिल द्वारा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।”
यह मामला औपचारिक रूप से झारखंड स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष को जांच के लिए भेजा गया। फैसले में स्थिति की गंभीरता इस बात से भी उजागर होती है कि बार काउंसिल के अध्यक्ष, श्री राजेंद्र कृष्ण, “भी अदालत कक्ष में आ गए थे और यह आदेश उनकी उपस्थिति के साथ-साथ अधिवक्ता संघ, झारखंड हाईकोर्ट के अध्यक्ष और सचिव और बार के अन्य सदस्यों की उपस्थिति में पारित किया जा रहा है, जो इस घटना के साक्षी रहे हैं।”
हाईकोर्ट रजिस्ट्री को यह आदेश तत्काल बार काउंसिल के अध्यक्ष को भेजने का निर्देश दिया गया।
संदर्भ: जमानत याचिका
यह नाटकीय घटनाक्रम चीरा चास पी.एस. केस संख्या 72/2025 में अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सामने आया। याचिकाकर्ताओं पर एक 80 वर्षीय व्यक्ति की जमीन हड़पने का प्रयास करने का आरोप था। अदालत ने “गंभीर आरोप” और याचिकाकर्ताओं के आपराधिक इतिहास का हवाला देते हुए उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी और यह भी टिप्पणी की थी कि “झारखंड राज्य में इस तरह का अपराध बहुत बड़े पैमाने पर फैला हुआ है।”