कलकत्ता हाईकोर्ट ने बिरभूम की दो परिवारों की बांग्लादेश निर्वासन की कार्रवाई रद्द की, एक महीने में भारत वापसी का निर्देश

कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसके तहत पश्चिम बंगाल के बिरभूम जिले की दो महिलाओं और उनके परिवारों को “अवैध प्रवासी” बताकर बांग्लादेश भेज दिया गया था। अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया है कि छहों लोगों को एक महीने के भीतर भारत वापस लाया जाए।

न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती की पीठ ने यह आदेश सुनाया और केंद्र की ओर से मांगी गई अस्थायी रोक की मांग भी खारिज कर दी। यह मामला बिरभूम के मुराराई क्षेत्र के भदू शेख और आमिर खान द्वारा दायर हेबियस कॉर्पस याचिकाओं से जुड़ा है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि उनकी बहनें — सोनाली बीबी और स्वीटी बीबी — को उनके परिवारों सहित जून में जबरन सीमा पार भेज दिया गया।

याचिकाओं के अनुसार, दोनों परिवार पिछले दो दशकों से दिल्ली के रोहिणी सेक्टर 26 क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरी कर जीवनयापन कर रहे थे। 18 जून को दिल्ली पुलिस ने उन्हें अवैध बांग्लादेशी होने के संदेह में हिरासत में लिया। 27 जून को उन्हें बांग्लादेश भेज दिया गया, जबकि उन्होंने भूमि स्वामित्व के कागजात, माता-पिता और दादा-दादी के मतदाता पहचान पत्र तथा बच्चों के सरकारी अस्पतालों से जारी जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज प्रस्तुत किए थे।

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बांग्लादेश भेजे जाने के बाद वहां की पुलिस ने भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सोनाली, जो नौ माह की गर्भवती हैं, अपने पति और पांच वर्षीय पुत्र के साथ निर्वासित की गईं। उनके परिजनों ने अदालत में चिंता जताई कि यदि बच्चे का जन्म बांग्लादेश में होता है तो उसकी नागरिकता पर संकट खड़ा हो जाएगा।

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केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि चूंकि इन व्यक्तियों को दिल्ली में हिरासत में लिया गया था, इसलिए कलकत्ता हाईकोर्ट के पास क्षेत्राधिकार नहीं है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती ने यह भी तर्क दिया कि दिल्ली हाईकोर्ट में पहले से दो अलग याचिकाएं लंबित हैं और उन्हें दबाकर यहां याचिका दायर की गई।

केंद्र ने 2 मई 2025 को गृह मंत्रालय के एक निर्देश का हवाला दिया, जिसके तहत दिल्ली स्थित विदेशियों का क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) को बांग्लादेश और म्यांमार के अवैध प्रवासियों को वापस भेजने का अधिकार दिया गया है। लेकिन पीठ ने पाया कि निर्वासन की प्रक्रिया में उन प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया, जिनमें राज्य सरकारों द्वारा जांच के बाद ही कार्रवाई करने का प्रावधान है।

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फैसले के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हलचल तेज हो गई। तृणमूल कांग्रेस के सांसद समीरुल इस्लाम ने इसे “भाजपा की बंगाल विरोधी साजिश की पोल खोलने वाला फैसला” बताया। उन्होंने एक्स (X) पर लिखा:
“आज कलकत्ता हाईकोर्ट ने भाजपा की झूठी कहानी को चकनाचूर कर दिया — गर्भवती बिरभूम निवासी सोनाली खातून और पांच अन्य (जिनमें बच्चे भी शामिल हैं) को ‘बांग्लादेशी नागरिक’ बताने की साजिश झूठ साबित हुई। यह सिर्फ मेरी जीत नहीं, यह पूरे बंगाल की जीत है।”

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उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल “गरीब और बंगाली विरोधी नीतियों के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से लड़ाई जारी रखेगी।”

अदालत ने केंद्र को आदेश दिया है कि वह एक महीने के भीतर दोनों परिवारों की सुरक्षित भारत वापसी सुनिश्चित करे। यह फैसला उन मामलों में अहम माना जा रहा है, जिनमें भारतीय नागरिकों को गलत तरीके से विदेशी बताकर निर्वासित किए जाने का आरोप लगाया जाता है।

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