आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में, एक सिविल रिविज़न याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता के वकील पर मामले को तत्काल सूचीबद्ध कराने के लिए तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया। न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी ने फैसला सुनाया कि एक निष्पादन न्यायालय द्वारा किसी पक्ष को पेश होने और आपत्तियां दर्ज करने के लिए भेजा गया नोटिस सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 115 के तहत ‘तय मामला’ नहीं है और गलत बयानों के आधार पर याचिका दायर करना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
यह अदालत 2002 के एक सिविल मुकदमे में निर्णीत-ऋणी पिल्ला वेंकटेश्वर राव द्वारा दायर एक सिविल रिविज़न याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विजयवाड़ा के प्रधान वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश द्वारा जारी एक नोटिस को चुनौती दी गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला कंचेरला मलयाद्री द्वारा पिल्ला वेंकटेश्वर राव के खिलाफ दायर एक मुकदमे (O.S.No.623 of 2002) से संबंधित है। 8 दिसंबर 2006 को, निचली अदालत ने मुकदमा मलयाद्री के पक्ष में तय करते हुए राव को संपत्ति का कब्जा खाली करने का निर्देश दिया था। राव ने इस डिक्री को एक अपील (A.S.No.33 of 2007) के माध्यम से चुनौती दी, जो बाद में 20 मार्च 2023 को पैरवी न करने के कारण खारिज कर दी गई।

अपील खारिज होने के बाद, डिक्री-धारक मलयाद्री ने निष्पादन कार्यवाही (E.P. No.73 of 2025) शुरू की। 2 सितंबर 2025 को, निष्पादन न्यायालय ने राव को एक नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें 6 अक्टूबर 2025 को अदालत में पेश होकर अपनी आपत्तियां, यदि कोई हों, दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। यही नोटिस हाईकोर्ट के समक्ष सिविल रिविज़न याचिका का विषय बना।
याचिकाकर्ता के तर्क
याचिकाकर्ता के वकील, श्री ए. रवींद्र बाबू ने तर्क दिया कि यह रिविज़न आवश्यक था क्योंकि अपील की बर्खास्तगी को रद्द करने के लिए एक आवेदन अभी भी लंबित था। उन्होंने दलील दी कि चूँकि अपील डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज हुई थी और गुण-दोष के आधार पर नहीं, इसलिए निचली अदालत की डिक्री अंतिम नहीं हुई थी और इसे निष्पादित नहीं किया जा सकता था। उन्होंने यह भी कहा कि निष्पादन न्यायालय का नोटिस त्रुटिपूर्ण था क्योंकि इसमें उस कानूनी प्रावधान का उल्लेख नहीं था जिसके तहत इसे जारी किया गया था।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी ने याचिकाकर्ता के तर्कों को “भ्रामक और निराधार” बताते हुए खारिज कर दिया।
अदालत ने सीपीसी के आदेश 41 नियम 17 की व्याख्या का हवाला देते हुए, गैर-उपस्थिति के लिए अपील की बर्खास्तगी पर कानूनी स्थिति स्पष्ट की। न्यायमूर्ति तिलहरी ने अश्वथम्मा बनाम लक्ष्मम्मा और बेनी डिसूजा बनाम मेल्विन डिसूजा में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख किया, जिसमें यह स्थापित किया गया है कि एक अपीलीय अदालत अपीलार्थी की अनुपस्थिति में गुण-दोष के आधार पर अपील को खारिज नहीं कर सकती; इसे केवल पैरवी न करने के कारण खारिज किया जा सकता है।
फैसले में इस बात की पुष्टि की गई कि “डिफ़ॉल्ट रूप से अपील खारिज होने पर भी निचली अदालत की डिक्री की पुष्टि होती है।” अदालत ने यह भी कहा कि केवल एक अपील या बहाली आवेदन का लंबित होना डिक्री के निष्पादन पर स्वत: रोक नहीं लगाता है।
निर्णायक रूप से, अदालत ने सिविल रिविज़न याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना। न्यायमूर्ति तिलहरी ने कहा, “इस अदालत का सुविचारित मत है कि निष्पादन मामले में याचिकाकर्ता को पेश होने और आपत्तियां दर्ज करने के लिए कहने वाले नोटिस के खिलाफ सीपीसी की धारा 115 के तहत सिविल रिविज़न याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। यह हाईकोर्ट के अधीनस्थ किसी भी अदालत द्वारा तय किया गया मामला नहीं है।”
वकील के आचरण पर टिप्पणियां
अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील के आचरण पर गंभीर आपत्ति जताई। न्यायमूर्ति तिलहरी ने कहा कि मामले को गलत बयानी के आधार पर ‘लंच मोशन’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। कोर्ट स्लिप में तात्कालिकता का कारण यह बताया गया था कि “कब्जे की सुपुर्दगी के लिए नोटिस” जारी किया गया था, जिसे अदालत ने झूठा पाया।
फैसले में कहा गया, “विवादित नोटिस निष्पादन मामले में उपस्थिति और आपत्तियां दर्ज करने के लिए है, न कि इस स्तर पर कब्जे की सुपुर्दगी के लिए।” अदालत ने इस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा, “ऐसी याचिकाएं दायर करना इस अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। एक गैर-मौजूद आधार पर गलत बयानी करके लंच मोशन के लिए तात्कालिकता का हवाला देना जुर्माना लगाने योग्य है।”
अंतिम आदेश
सिविल रिविज़न याचिका खारिज कर दी गई और याचिकाकर्ता के वकील पर सीधे 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। यह राशि तीन सप्ताह के भीतर आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट कानूनी सेवा समिति को भुगतान की जानी है। रजिस्ट्रार (न्यायिक) को अनुपालन सुनिश्चित करने और अनुपालन रिपोर्ट के अवलोकन के लिए मामले को 6 अक्टूबर 2025 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया है।