सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि किसानों के संगठन किसान महापंचायत द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) में उठाए गए मुद्दों पर क्या कदम उठाए जाएंगे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि पीली मटर का बड़े पैमाने पर आयात देश में दाल उत्पादक किसानों की आजीविका पर गंभीर असर डाल रहा है।
जस्टिस सूर्यकांत,जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले में नोटिस जारी किया और सरकार से स्पष्टीकरण मांगा। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलीलें पेश कीं।
पीठ ने कहा कि आयात पर प्रतिबंध लगाने के नाम पर उपभोक्ताओं को कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
“हम नोटिस जारी करने के इच्छुक हैं, लेकिन इसका नतीजा यह नहीं होना चाहिए कि उपभोक्ताओं को कष्ट झेलना पड़े,” अदालत ने कहा।

साथ ही अदालत ने भूषण से पूछा कि क्या देश में दालों का उत्पादन उपभोक्ता मांग पूरी करने के लिए पर्याप्त है।
भूषण ने कहा कि पीली मटर 35 रुपये प्रति किलो की दर से आयात हो रही है, जबकि तूर दाल, मूंग दाल और उड़द दाल जैसी फसलें उगाने वाले किसानों को 85 रुपये प्रति किलो का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिलता है।
“इस अंतर से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने अदालत को बताया कि कृषि मंत्रालय और नीति आयोग सहित कई विशेषज्ञ संस्थाओं ने पीली मटर के आयात पर रोक लगाने की सिफारिश की है और घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया है।
पीठ ने यह भी सवाल उठाया कि पीली मटर के सेवन का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है।
“आप आयात रोक दीजिए और बाजार में कमी हो जाए, तो यह भी समस्या होगी… क्या आपने इसके स्वास्थ्य प्रभावों की जांच की है?” अदालत ने पूछा।
भूषण ने जवाब दिया कि कुछ देशों में इसे मवेशियों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रतिकूल असर देखे गए हैं।
“बहुत बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं,” उन्होंने जोड़ा।
पीली मटर को दालों का सस्ता विकल्प माना जाता है और इसका आयात मुख्य रूप से कनाडा और रूस से होता है। किसानों का कहना है कि सस्ते आयात से घरेलू बाजार की कीमतें गिर रही हैं, जिससे सरकार की MSP नीति भी कमजोर हो रही है।
अब यह मामला केंद्र के जवाब दाखिल करने के बाद आगे सुना जाएगा।