फैसलों में देरी पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा कदम: अब हाईकोर्ट को बतानी होगी फैसला सुरक्षित रखने, सुनाने और अपलोड करने की तारीख

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के सभी हाईकोर्ट को फैसला सुनाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और तेजी लाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। फैसलों के ऐलान में हो रही अत्यधिक देरी से संबंधित एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश दिया। पीठ ने सभी हाईकोर्ट को चार सप्ताह के भीतर अपनी प्रक्रियाओं में बदलाव करने का निर्देश दिया है, ताकि फैसले को सुरक्षित रखने, सुनाने और आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करने की तारीखों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जा सके।

यह आदेश पीला पाहन उर्फ पीला पाहन व अन्य बनाम झारखंड राज्य व अन्य मामले में आया है, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने सालों पहले बहस पूरी हो जाने के बावजूद फैसला नहीं सुनाए जाने की शिकायत की थी।

मामले की पृष्ठभूमि

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यह रिट याचिका उन याचिकाकर्ताओं की पीड़ा को उजागर करती है जिन्हें अपनी सुनवाई पूरी होने और फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है। इस पर संज्ञान लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी सभी हाईकोर्ट को लंबित फैसलों और उन्हें सुरक्षित रखने की तारीखों के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया था। बाद में, अदालत ने फैसलों को हाईकोर्ट की वेबसाइटों पर अपलोड करने की तारीखों का विवरण भी मांगा था।

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न्याय मित्र (Amicus Curiae) की दलीलें

22 सितंबर, 2025 को हुई सुनवाई के दौरान, अदालत की सहायता के लिए नियुक्त की गईं न्याय मित्र, सुश्री फौजिया शकील ने प्राप्त जानकारी के आधार पर एक संकलन रिपोर्ट पेश की। उन्होंने कई विसंगतियों और कठिनाइयों की ओर ध्यान दिलाया:

  • केरल और पटना हाईकोर्ट से अभी भी पूरी रिपोर्ट का इंतजार है।
  • 11 हाईकोर्ट ने उन मामलों में फैसला सुरक्षित रखने की तारीख नहीं बताई है, जिनमें फैसला सुनाया जा चुका है।
  • विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा अलग-अलग प्रारूपों में जानकारी भेजी गई, जिससे “रिपोर्टों को संकलित करने और फिर उनका विश्लेषण करने में वास्तविक कठिनाई” हुई।
  • एक बड़ी समस्या यह भी उजागर हुई कि न्यायाधीश कई बार “फैसले का केवल ऑपरेटिव (प्रभावी) हिस्सा ही सुनाते हैं,” और विस्तृत फैसला या तो बहुत लंबे समय तक अपलोड नहीं किया जाता या इसमें “अत्यधिक देरी” होती है।

इस जटिल डेटा संकलन कार्य के प्रबंधन के लिए, न्याय मित्र ने सहायता का अनुरोध किया।

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न्यायालय का विश्लेषण और निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने न्याय मित्र के सामने आने वाली चुनौतियों को स्वीकार किया और उन्हें सुप्रीम कोर्ट बार की दो युवा महिला वकीलों की सहायता लेने की अनुमति दी, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति द्वारा कानूनी सहायता वकील के रूप में नियुक्त किया जाएगा।

मूल मुद्दे को संबोधित करते हुए, पीठ ने न्याय मित्र को सभी हाईकोर्ट में लागू होने वाले डेटा संग्रह के लिए एक समान प्रारूप तैयार करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही, अदालत ने एक महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक सुधार करते हुए एक बाध्यकारी निर्देश जारी किया:

“इस बीच, सभी हाईकोर्ट को निर्देश दिया जाता है कि वे अपनी मौजूदा प्रथाओं या प्रारूपों को उपयुक्त रूप से संशोधित करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि (i) जिस तारीख को फैसला सुरक्षित रखा गया है; (ii) जिस तारीख को फैसला सुनाया गया है; और (iii) जिस तारीख को फैसला वेबसाइट पर अपलोड किया गया है, उसका स्पष्ट रूप से फैसले की अपलोड/प्रमाणित प्रति में उल्लेख हो।”

इसके अलावा, ऑपरेटिव हिस्से के ऐलान के बाद होने वाली देरी की समस्या से निपटने के लिए, अदालत ने आदेश दिया कि नए प्रारूप में एक कॉलम यह भी निर्दिष्ट करेगा कि “सिर्फ ऑपरेटिव हिस्सा सुनाया गया था या पूरा फैसला सुनाया गया था।”

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समय-सीमा पर जोर

पीठ ने रतिलाल झावरभाई परमार व अन्य बनाम गुजरात राज्य व अन्य (सी.ए. संख्या 11000/2024) मामले में दिए गए अपने पिछले फैसले को जोर देकर दोहराया, जिसमें यह कहा गया था कि ऑपरेटिव हिस्से के ऐलान के पांच दिनों के भीतर तर्कपूर्ण फैसला अपलोड किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट “इस सिद्धांत का पालन करने के लिए बाध्य हैं।”

हालांकि, व्यावहारिक कठिनाइयों को स्वीकार करते हुए, अदालत ने यह भी कहा कि अगर हाईकोर्ट वास्तविक समस्याएं सामने लाते हैं तो वह समय-सीमा को “पांच दिनों से बढ़ाकर दस या पंद्रह दिन (अधिकतम)” करने पर विचार कर सकती है।

मामले पर अगली सुनवाई 10 नवंबर, 2025 को होगी।

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