सुप्रीम कोर्ट का आदेश: प्लॉट ख़रीदार को 43 लाख रुपये 18% ब्याज सहित लौटाए बिल्डर

सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट कंपनी बिज़नेस पार्क टाउन प्लानर्स लिमिटेड को एक प्लॉट ख़रीदार को 43 लाख रुपये से अधिक की राशि 18% वार्षिक ब्याज सहित लौटाने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने यह राहत राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा तय 9% ब्याज दर से बढ़ाकर दी।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने खरीदार रजनीश शर्मा की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया। शर्मा ने कंपनी पर अत्यधिक विलंब, अनुचित शुल्क वसूली और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

एनसीडीआरसी ने जनवरी 2023 में बिल्डर को 43.13 लाख रुपये की मूल राशि 9% वार्षिक ब्याज सहित लौटाने और 25,000 रुपये मुकदमा खर्च देने का आदेश दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिल्डर के आचरण को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है।

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जस्टिस दत्ता ने अपने फ़ैसले में लिखा:

“उत्तरदाता द्वारा प्लॉट देने में की गई देरी, खरीदार से 18% वार्षिक विलंब शुल्क वसूलने की प्रवृत्ति, और अपीलकर्ता को एक दशक से अधिक इंतज़ार करने की पीड़ा — इन सभी परिस्थितियों में केवल 9% ब्याज देना न्यायोचित नहीं होगा।”

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पीठ ने कहा कि बिल्डर ने ख़रीदारों से भुगतान में देरी पर 18% ब्याज वसूला, लेकिन खुद अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए केवल 9% पर सीमित होना चाहा। “न्याय और निष्पक्षता की मांग है कि बिल्डर को भी वही कठोरता झेलनी पड़े,” अदालत ने कहा।

  • 2006: शर्मा ने “पार्क लैंड” परियोजना में 36.03 लाख रुपये का प्लॉट बुक किया और 7.86 लाख रुपये अग्रिम दिया।
  • 2007: समझौते के तहत कंपनी को 24 माह में प्लॉट सौंपना था। अनुबंध में ख़रीदार की देरी पर 18% वार्षिक जुर्माने का प्रावधान था।
  • 2011: शर्मा द्वारा लगभग 29 लाख रुपये भुगतान के बाद भी बिल्डर ने लेआउट परिवर्तन का हवाला देकर दूसरा प्लॉट ऑफर किया और 2.30 लाख रुपये अतिरिक्त मांगे।
  • 2015: कुल 43.13 लाख रुपये चुकाने के बावजूद कब्ज़ा नहीं दिया गया, उल्टा बिल्डर ने कथित देरी पर 18% ब्याज वसूला।
  • 2017: शर्मा ने अनुबंध समाप्त कर रिफंड की मांग की।
  • 2018: उन्होंने एनसीडीआरसी का रुख किया।
  • 2023: एनसीडीआरसी ने 9% ब्याज सहित रिफंड का आदेश दिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने राहत को बढ़ाते हुए बिल्डर को निर्देश दिया कि वह शर्मा द्वारा चुकाई गई पूरी राशि 18% वार्षिक ब्याज सहित लौटाए। अदालत ने कहा कि अन्यथा “एक स्पष्ट रूप से अन्यायपूर्ण सौदे” को ही वैध ठहराना होगा।

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