एआईएफएफ ने सुप्रीम कोर्ट को दी सफाई, कहा– फीफा को संविधान पर कोई पत्र नहीं लिखा, आम सभा में होगा अनुमोदन

ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्पष्ट किया कि उसने अपने संशोधित संविधान के संबंध में अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ (फीफा) को कोई पत्र नहीं लिखा है। फेडरेशन ने भरोसा दिलाया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित संविधान को आगामी आम सभा की बैठक में विधिवत अपनाया जाएगा।

यह स्पष्टीकरण उस समय आया जब अदालत ने एक समाचार रिपोर्ट पर चिंता जताई, जिसमें दावा किया गया था कि एआईएफएफ ने मसौदा संविधान को लेकर फीफा को पत्र लिखा है।

एआईएफएफ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर की पीठ को बताया, “फेडरेशन इस रिपोर्ट से इनकार करता है। सब कुछ इस अदालत के निर्णय के अनुसार ही होगा।” उन्होंने कहा कि फीफा के साथ अन्य विषयों पर पत्राचार हो सकता है, लेकिन संविधान या न्यायालय के फैसले से जुड़ा कोई संवाद नहीं हुआ।

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न्यायालय की सहायता कर रहे एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने मंगलवार को यह रिपोर्ट अदालत के समक्ष रखी थी। बुधवार को उन्होंने कहा कि एआईएफएफ के इनकार के बाद उन्हें भरोसा है कि कोई पत्र लिखा ही नहीं गया।

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एआईएफएफ ने बताया कि 19 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित संविधान का मसौदा पहले ही आम सभा के सदस्यों को भेजा जा चुका है और चार सप्ताह की समयसीमा के भीतर इसे पारित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

19 सितंबर के फैसले में न्यायमूर्ति नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने एआईएफएफ को संशोधित संविधान आम सभा में पेश कर अनुमोदित करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा था कि खेल सुविधाएं और अवसर “समुदाय के भौतिक संसाधन” हैं और केवल खेलने ही नहीं, बल्कि खेल प्रशासन के लिए भी सभी के लिए सुलभ बने रहने चाहिए।

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अदालत ने चेतावनी दी थी कि खेल संसाधन “शहरी आर्थिक अभिजात वर्ग” के हाथों में केंद्रित नहीं होने चाहिए। राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खेल संस्थान दक्षता, ईमानदारी, पेशेवराना क्षमता और विशेषज्ञता के साथ संचालित हों और सभी वर्गों तक पहुंच योग्य हों।

पीठ ने एआईएफएफ की आम सभा में 15 प्रमुख खिलाड़ियों को शामिल करने के प्रावधान को बरकरार रखा और कहा कि पात्रता मानदंड में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं। अदालत ने कहा, “संघ बनाने की स्वतंत्रता किसी भी तरह से बाधित नहीं होती, यदि उसमें 15 प्रमुख खिलाड़ियों को शामिल करने का प्रावधान किया गया है।”

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वहीं, अधिवक्ता राहुल मेहरा ने यह आपत्ति जताई कि राष्ट्रीय खेल महासंघ विदेशी खेल निकायों के पत्रों का उपयोग कर अदालत के आदेशों को कमजोर करने का प्रयास करते हैं।

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