सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) को निर्देश दिया कि वह कश्मीरी अलगाववादी नेता शबीर अहमद शाह की अन्य आपराधिक मामलों में हिरासत की स्थिति का ब्यौरा प्रस्तुत करे। शाह वर्तमान में 2017 के आतंकी फंडिंग मामले में आरोपी हैं।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने कहा कि शाह के खिलाफ “संभवतः 24 मामले लंबित हैं” और एजेंसी से प्रत्येक मामले में उनकी हिरासत की स्थिति स्पष्ट करने को कहा। यह आदेश शाह की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के 12 जून के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था।
सुनवाई के दौरान NIA ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि 4 सितंबर को ही शाह की याचिका पर नोटिस जारी हो चुका है और एजेंसी को अपना जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय चाहिए। अदालत ने चार सप्ताह का समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को तय की।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने शाह को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था और केवल NIA से जवाब मांगा था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने जून के आदेश में कहा था कि शाह के “इसी तरह की गैरकानूनी गतिविधियों” में शामिल होने या गवाहों को प्रभावित करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने शाह की वैकल्पिक मांग—उन्हें “गृह गिरफ्तारी” में रखने—को भी गंभीर आरोपों के मद्देनज़र खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया था कि शाह, प्रतिबंधित संगठन जम्मू एंड कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी (JKDPF) के अध्यक्ष हैं और उनके खिलाफ करीब 24 मामले लंबित हैं, जिनमें से अधिकतर देशद्रोह और अलगाववादी गतिविधियों से जुड़े हैं।
NIA ने शाह को 4 जून 2019 को गिरफ्तार किया था। 2017 में एजेंसी ने 12 व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिसमें उन पर पत्थरबाज़ी, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और केंद्र सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रचने के लिए धन जुटाने का आरोप था।
NIA के अनुसार, शाह ने आतंकवादी एवं अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में “महत्वपूर्ण भूमिका” निभाई। आरोप है कि उन्होंने:
- आम जनता को अलगाववादी नारे लगाने के लिए उकसाया,
- मारे गए आतंकियों को “शहीद” बताकर उनकी महिमा गाई,
- हवाला के माध्यम से धन प्राप्त किया, और
- एलओसी व्यापार के जरिए फंड जुटाकर जम्मू-कश्मीर में विध्वंसक गतिविधियों को अंजाम दिया।
हाईकोर्ट ने कहा था कि संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता या अपराध के लिए उकसावे जैसे पहलुओं पर उचित प्रतिबंधों के अधीन है।
अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई NIA की विस्तृत रिपोर्ट दाखिल होने के बाद करेगा।