कलकत्ता हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सोमवार को उस एकल पीठ के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें 1993 के बोवबाजार ब्लास्ट केस के दोषी उम्रकैद कैदी मोहम्मद खालिद की समयपूर्व रिहाई की अनुमति दी गई थी। इस विस्फोट में लगभग 70 लोगों की मौत हुई थी।
जस्टिस देबांगसु बसाक और जस्टिस मोहम्मद शब्बार राशिदी की पीठ ने कहा कि राज्य दंड पुनरीक्षण बोर्ड (State Sentence Review Board) द्वारा खालिद की रिहाई से इनकार करने की प्रक्रिया को गलत नहीं ठहराया जा सकता।
बोर्ड ने 9 अक्टूबर 2023 को अपनी बैठक में विभिन्न रिपोर्टों पर विचार किया। मिदनापुर सेंट्रल करेक्शनल होम के अधीक्षक और मुख्य प्रोबेशन-कम-आफ्टरकेयर अधिकारी ने खालिद की रिहाई की सिफारिश की थी।

हालांकि, कोलकाता पुलिस ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि खालिद ब्लास्ट के मास्टरमाइंड राशिद खान का करीबी सहयोगी था और उसने उसके निर्देश पर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दिया। पुलिस ने यह भी आशंका जताई कि उसकी रिहाई से क्षेत्र में फिर से गंभीर कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होगी और केस के गवाहों की जान पर भी खतरा हो सकता है।
डिवीजन बेंच ने माना कि सरकार और पुलिस की ओर से जताई गई आशंकाओं को बोर्ड ने उचित महत्व दिया और उसका निर्णय ‘‘युक्तिसंगत’’ है।
16 मार्च 1993 को कोलकाता के बोवबाजार इलाके में आधी रात को एक घर में विस्फोट हुआ था, जिसमें करीब 70 लोग मारे गए थे और पूरी इमारत मलबे में तब्दील हो गई थी। इस मामले में सट्टा डॉन राशिद खान और पाँच अन्य आरोपियों को टाडा (TADA) के तहत उम्रकैद की सजा दी गई थी।
खालिद पिछले 32 साल से जेल में है। 9 अप्रैल 2024 को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने उसकी समयपूर्व रिहाई का आदेश दिया था, लेकिन राज्य सरकार की अर्जी पर उस आदेश पर चार हफ्तों के लिए रोक लगा दी गई थी। इसके बाद राज्य ने अपील दायर की, जिस पर डिवीजन बेंच ने अंतिम सुनवाई तक रिहाई पर रोक लगा दी थी।
“पुनरीक्षण बोर्ड का दृष्टिकोण तार्किक है और इसे न तो मनमाना कहा जा सकता है और न ही शक्तियों का दुरुपयोग,” अदालत ने कहा।