सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कुछ हाईकोर्ट जजों के “अपने काम पूरे करने में विफल” रहने पर गहरी चिंता जताई और न्यायपालिका में “प्रदर्शन मूल्यांकन” (Performance Evaluation) की व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि जहाँ कई जज दिन-रात मेहनत कर मामलों का उत्कृष्ट निपटान कर रहे हैं, वहीं कुछ जज अपेक्षित स्तर पर कार्य नहीं कर पा रहे हैं। पीठ ने टिप्पणी की – “ऐसे जज भी हैं जो दिन-रात काम करते हैं और अद्भुत निपटान कर रहे हैं। लेकिन कुछ जज ऐसे भी हैं जो दुर्भाग्यवश डिलीवर नहीं कर पा रहे – इसके कारण अच्छे हों या बुरे, हम नहीं जानते।”
जमानत बनाम आपराधिक अपील
पीठ ने यह स्पष्ट किया कि मामलों की प्रकृति के अनुसार अपेक्षाएँ अलग होनी चाहिए। “मान लीजिए कोई जज आपराधिक अपील सुन रहा है तो हम उससे यह उम्मीद नहीं करते कि वह एक ही दिन में 50 मामले निपटा दे। एक दिन में केवल एक आपराधिक अपील का निर्णय देना ही बड़ी उपलब्धि है। लेकिन अगर जमानत के मामले में कोई जज कहे कि मैं दिनभर में केवल एक ही जमानत याचिका तय करूंगा, तो यह आत्ममंथन की बात है।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका मकसद जजों पर “प्रधानाचार्य” की तरह निगरानी करना नहीं है, बल्कि ऐसे व्यापक दिशा-निर्देश बनाने हैं जिससे जज यह समझ सकें कि उनके सामने कितने कार्य हैं और उनसे कितनी डिलीवरी की अपेक्षा है।
झारखंड हाईकोर्ट के मामले से उठा सवाल
ये टिप्पणियाँ उस मामले की सुनवाई के दौरान आईं जिसमें कई उम्रकैद और फांसी की सजा पाए कैदियों ने शिकायत की थी कि झारखंड हाईकोर्ट ने उनकी आपराधिक अपीलों पर वर्षों से निर्णय सुरक्षित रखे हैं। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने फैसले सुना दिए और कई अभियुक्तों को बरी कर दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस देरी को गंभीर समस्या बताया।
अधिवक्ता फौजिया शकील ने विभिन्न हाईकोर्टों में सुरक्षित रखे गए निर्णयों की स्थिति पर एक चार्ट पेश किया और कहा कि कुछ हाईकोर्ट निर्धारित प्रारूप में आंकड़े उपलब्ध ही नहीं करा रहे हैं। पीठ ने उन्हें निर्देश दिया कि वे दो सप्ताह में सभी हाईकोर्टों का डेटा दाखिल करें जिसमें फैसला सुरक्षित करने की तारीख, निर्णय की तारीख और अपलोडिंग की तारीख हो। वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत सिन्हा को भी अदालत की सहायता के लिए कहा गया।
अनावश्यक स्थगन से छवि को नुकसान
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने चेतावनी दी कि बिना कारण मामलों को बार-बार स्थगित करना न्यायपालिका की छवि को धक्का पहुँचाता है। “हर जज को ऐसा आत्म-प्रबंधन तंत्र होना चाहिए कि फाइलें उनकी डेस्क पर जमा न हों। कुछ जजों की आदत होती है अधिक से अधिक मामले सुनने की, और नतीजा यह होता है कि वे मामलों को अनावश्यक रूप से स्थगित करते रहते हैं। इससे छवि पर प्रतिकूल असर पड़ता है।”
फैसले लिखने की समय-सीमा
पीठ ने यह भी याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश के अनुसार जब केवल आदेश का परिचालन भाग सुनाया जाता है तो विस्तृत कारण पाँच दिन के भीतर दर्ज किए जाने चाहिए। “जब तक इस समय-सीमा को सुप्रीम कोर्ट संशोधित नहीं करता, हाईकोर्ट इसका पालन करने के लिए बाध्य है।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जनता का न्यायपालिका से वैध अपेक्षा है कि न केवल निष्पक्ष निर्णय दिए जाएँ बल्कि वे समय पर भी दिए जाएँ।