बॉम्बे हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसमें मराठा समुदाय के योग्य व्यक्तियों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र जारी करने का निर्णय लिया गया है। इस फैसले से मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।
यह याचिकाएँ ओबीसी संगठनों की ओर से दायर की गई हैं, जिनमें कुनबी सेना, महाराष्ट्र माली समाज महासंघ, अहिर सुवर्णकर समाज संस्था, सदानंद मंडलिक और महाराष्ट्र नाभिक महामंडल शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य सरकार का निर्णय मनमाना, असंवैधानिक और अवैध है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
यह मामला न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और संदीप पाटिल की खंडपीठ के समक्ष आया। सुनवाई शुरू होते ही न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि वे इन याचिकाओं को नहीं सुन सकते। इसके बाद पीठ ने बिना कोई कारण बताए खुद को मामले से अलग कर लिया। अब यह याचिकाएँ मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंकद की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगाई जाएंगी।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने अपने प्रस्तावों में कुनबी, कुनबी मराठा और मराठा कुनबी जातियों के प्रमाणपत्र देने के मापदंड बदल दिए हैं। ये प्रस्ताव “अस्पष्ट” हैं और इससे “पूर्ण अराजकता” की स्थिति उत्पन्न होगी। उनका आरोप है कि यह निर्णय मराठा समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल करने का “पिछले दरवाजे से प्रवेश” कराने जैसा है।
सरकार का यह निर्णय मराठा आरक्षण आंदोलनकारी मनोज जरांगे के पांच दिवसीय अनशन (29 अगस्त से, आज़ाद मैदान, मुंबई) के बाद आया। इस आंदोलन से दक्षिण मुंबई के कई इलाकों में जनजीवन प्रभावित हुआ था, जिस पर हाई कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि शहर को ठप कर दिया गया है।
इसके बाद, 2 सितंबर को सरकार ने हैदराबाद गजेटियर का हवाला देते हुए एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) जारी किया। इसमें कहा गया कि जो मराठा समुदाय के सदस्य ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के आधार पर खुद को कुनबी साबित कर पाएंगे, उन्हें कुनबी जाति प्रमाणपत्र दिया जाएगा। इसके लिए एक समिति भी गठित की गई है।
सरकार के इस कदम से ओबीसी वर्ग में असंतोष बढ़ गया है। उनका कहना है कि मराठाओं को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने से उनका आरक्षण हिस्सा घट जाएगा। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी करते हुए यह प्रस्ताव जारी किया है, जो क़ानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है।
अब यह मामला आगे मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष विचारार्थ रखा जाएगा।