दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर कर तिहाड़ जेल परिसर से आतंकियों मोहम्मद अफजल गुरु और मोहम्मद मकबूल भट्ट की कब्रें हटाने की मांग की गई है। दोनों को आतंकवादी घटनाओं में दोषी पाए जाने पर मृत्युदंड दिया गया था और तिहाड़ जेल में ही फांसी दी गई थी। भट्ट को 1984 में और गुरु को फरवरी 2013 में फांसी दी गई थी।
यह याचिका विश्व वैदिक सनातन संघ ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि राज्य-नियंत्रित जेल परिसर में इन कब्रों का बने रहना “अवैध, असंवैधानिक और सार्वजनिक हित के विपरीत” है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि इन कब्रों की मौजूदगी ने तिहाड़ जेल को “कट्टरपंथी तीर्थस्थल” बना दिया है, जहां चरमपंथी तत्व आकर सजायाफ्ता आतंकियों का महिमामंडन करते हैं।
याचिका में कहा गया है, “यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और लोक व्यवस्था को कमजोर करता है, बल्कि आतंकवाद को वैधता प्रदान करता है, जो संविधान के धर्मनिरपेक्षता और क़ानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ है।”

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि इन कब्रों का अस्तित्व दिल्ली कारागार नियम, 2018 का उल्लंघन है। इन नियमों के अनुसार, फांसी पाए कैदियों के शवों का निपटान इस प्रकार होना चाहिए जिससे उनका महिमामंडन न हो, जेल अनुशासन बना रहे और लोक व्यवस्था प्रभावित न हो।
याचिका में कहा गया कि अजमल कसाब और याकूब मेमन जैसे आतंकियों के मामलों में राज्य ने यह सुनिश्चित किया था कि उनकी मौत के बाद शव का निपटान गुप्त और सुरक्षित तरीके से हो ताकि किसी तरह का महिमामंडन न हो सके। इसी तरह अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रों को भी गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि भट्ट और गुरु दोनों ने “कट्टरपंथी जिहादी विचारधारा” के प्रभाव में रहकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया, जिससे भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को गंभीर खतरा हुआ। इसलिए अदालत से आग्रह है कि तत्काल हस्तक्षेप कर तिहाड़ जेल को किसी प्रकार का “आतंकी श्रद्धास्थल” बनने से रोका जाए।
दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले की सुनवाई उचित समय पर करेगा।