सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें मद्रास लॉ कॉलेज (अब डॉ. भीमराव आंबेडकर सरकारी विधि महाविद्यालय) के परिसर में स्थित डेविड येल और जोसेफ हिन्मर की कब्र को स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई थी। शीर्ष अदालत ने इस स्मारक को लेकर यथास्थिति बनाए रखने का भी निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने संस्कृति मंत्रालय और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा। पीठ ने कहा, “नोटिस जारी करें, जो चार सप्ताह में वापसी योग्य होगा।”
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि तत्काल स्थगन आदेश की आवश्यकता नहीं है, लेकिन इस स्मारक के संदर्भ में यथास्थिति बनाए रखना जरूरी है।

यह कब्र, जिसमें तत्कालीन मद्रास गवर्नर (1687–1692) एलीहू येल के पुत्र डेविड येल और उनके मित्र जोसेफ हिन्मर के अवशेष हैं, जनवरी 1921 में फोर्ट सेंट जॉर्ज गजट में प्रकाशित अधिसूचना के माध्यम से संरक्षित स्मारक घोषित की गई थी।
जून 2023 में मद्रास हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक याचिका स्वीकार करते हुए कहा था कि यह कब्र प्राचीन स्मारक नहीं है और इसे निर्धारित समयसीमा में स्थानांतरित किया जाए। अप्रैल 2024 में हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस आदेश को बरकरार रखा और दायर अपीलों को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने कहा था कि कोई भी ठोस सामग्री या प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह साबित हो सके कि यह कब्र ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक या कलात्मक महत्व की है। केवल यही तर्क दिया गया कि एलीहू येल, जिन्होंने 1692 तक मद्रास के गवर्नर के रूप में कार्य किया और बाद में इंग्लैंड लौट गए, ने अमेरिका के कनेक्टिकट कॉलेज को उदार दान दिया था। आगे चलकर वही कॉलेज येल यूनिवर्सिटी बना और उसने तमिल अध्ययन विभाग की स्थापना की।
अदालत ने माना कि यह संबंध मात्र पर्याप्त नहीं है कि इस कब्र को प्राचीन स्मारक का दर्जा देकर संरक्षित किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से फिलहाल कब्र को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया रुक गई है।