सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग (PWD) पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया। आरोप है कि विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय परिसर के बाहर नालों की सफाई के लिए मजदूरों से मैनुअल सीवर सफाई करवाई, जिसमें एक नाबालिग भी शामिल था। यह कदम कोर्ट के पहले के स्पष्ट आदेशों का उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने PWD की सफाई से नाराज़गी जताई और कहा कि मजदूरों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के सुप्रीम कोर्ट के गेट-एफ पर काम कराया गया।
कोर्ट का आदेश
पीठ ने कहा कि 20 अक्टूबर 2023 को दिए गए आदेशों को “सचेत रूप से नज़रअंदाज़” किया गया है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि जुर्माने की रकम राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के पास चार सप्ताह के भीतर जमा कराई जाए।

“फोटोग्राफ्स से स्पष्ट है कि काम मैनुअल सफाई के जरिए करवाया गया। इसलिए हम PWD को निर्देश देते हैं कि ₹5 लाख की राशि जमा करे,” कोर्ट ने कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त चेतावनी दी कि अगर भविष्य में दोबारा ऐसा पाया गया तो जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत FIR दर्ज की जाएगी।
नाबालिग की संलिप्तता पर चिंता
पीठ की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने बताया कि वीडियो रिकॉर्डिंग में यह स्पष्ट है कि सफाई में एक नाबालिग को भी लगाया गया।
“टिलक मार्ग थाने में शिकायत करने की कोशिश की गई थी, लेकिन न तो पुलिस और न ही PWD ने कोई कार्रवाई की। यह केवल श्रम कानून का उल्लंघन नहीं बल्कि संवैधानिक दायित्वों का भी हनन है। जुर्माना सीधे अधिकारियों से वसूला जाना चाहिए,” उन्होंने कहा।
PWD का बचाव खारिज
PWD की ओर से दलील दी गई कि यह काम सिर्फ “ढके हुए नालों की सिल्ट सफाई” था और अधिकारी दोषी नहीं हैं। लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों में साफ लिखा है कि सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराना अनिवार्य है और 18 वर्ष से कम उम्र के श्रमिकों को लगाना मना है।
पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि PWD ने न तो कांट्रैक्टर को चेतावनी दी, न ब्लैकलिस्ट किया और न ही कोई ठोस कदम उठाया।
“यह स्पष्ट है कि अधिकारी मामले को गंभीरता से नहीं ले रहे,” कोर्ट ने कहा।
लंबित जनहित याचिका का हिस्सा
यह मामला देशभर में मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या से जुड़ी एक जनहित याचिका में दायर आवेदनों के दौरान सामने आया। सुप्रीम कोर्ट परिसर के गेटों पर हुई इस घटना ने अदालत का ध्यान खींचा।
फिलहाल कोर्ट ने FIR दर्ज करने का आदेश नहीं दिया, लेकिन साफ कहा कि भविष्य में जरा भी चूक होने पर अधिकारियों और कांट्रैक्टर दोनों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई तय है।