दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षिका द्वारा छात्रों से नकद, मोबाइल और गहने की रिश्वत माँगने पर हुई बर्खास्तगी को दिल्ली हाईकोर्ट ने बरकरार रखा

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय की एक शिक्षिका की बर्खास्तगी को सही ठहराया है, जिन पर आरोप था कि उन्होंने छात्रों से उपस्थिति और अंक देने के बदले नकद व महंगे उपहार माँगे।

12 सितंबर को सुनाए गए फैसले में न्यायमूर्ति जसमींत सिंह ने इस आचरण को “गंभीर” बताया और कहा कि यह “शैक्षणिक ईमानदारी के मूल को चोट पहुँचाने वाला कृत्य” है।

मामला वर्ष 2008 का है, जब वाणिज्य विभाग की इस शिक्षिका (रीडर) पर कई छात्रों ने आरोप लगाया कि उन्होंने उनसे नकद, मोबाइल फोन, मोती की माला, हीरे की बालियाँ और यहाँ तक कि एक साड़ी तक माँगी। बदले में वह छात्रों की उपस्थिति दर्ज करने और अंक देने का वादा करती थीं।

Video thumbnail

याचिकाकर्ता ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह सब उन्हें बाहर करने की साज़िश के तहत गढ़े गए झूठे आरोप हैं। उन्होंने छात्रों द्वारा पेश किए गए ऑडियो रिकॉर्डिंग को भी चुनौती दी और दावा किया कि उसमें से उनके पक्ष के हिस्से हटा दिए गए थे।

READ ALSO  HC seeks report on extending e-mulakat facility to all prisoners with kin outside Delhi

विश्वविद्यालय और कॉलेज ने एक जाँच समिति बनाई, जिसने आरोपों को सही पाया। इसके बाद बनी अपील समिति ने भी आरोपों की पुष्टि की, लेकिन सज़ा में नरमी बरतते हुए बर्खास्तगी (Dismissal) की सज़ा को समाप्ति (Termination) में बदल दिया, जिससे शिक्षिका को सेवानिवृत्ति लाभ मिल सके।

हाईकोर्ट ने माना कि अपील समिति पहले ही दंड को नरम कर चुकी थी और न्याय को निष्पक्षता के साथ संतुलित किया गया था।

न्यायमूर्ति सिंह ने स्पष्ट किया:

READ ALSO  पंजाब सरकार लॉरेंस बिश्नोई के हिरासत में साक्षात्कार में संलिप्तता के लिए डीएसपी को बर्खास्त करेगी

“बर्खास्तगी को समाप्ति में बदलने के बाद यदि इसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से प्रतिस्थापित किया जाए तो यह पुरस्कार में फेरबदल होगा, जो स्वीकार्य नहीं है।”

अदालत ने कहा कि जाँच की प्रक्रिया निष्पक्ष थी, निष्कर्ष साक्ष्यों से समर्थित थे और सज़ा में पर्याप्त नरमी दिखाई गई थी। याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी तर्क—जैसे वैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन, जाँच समिति की गलत संरचना, साक्ष्यों की झूठी प्रकृति और वकील की सहायता न मिलना—को भी अदालत ने अस्वीकार कर दिया।

READ ALSO  यदि पहले से मौजूद बीमारी का खुलासा नहीं किया जाता है तो बीमा कंपनियां मेडिक्लेम को अस्वीकार कर सकती हैं: हाईकोर्ट

अंत में हाईकोर्ट ने कहा कि अपील समिति ने तथ्यों और साक्ष्यों की सही सराहना की और न्याय तथा समानता को ध्यान में रखकर निर्णय दिया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles